1 नक्षत्र क्या है।
2 नक्षत्र का इतिहास क्या है।
3 नक्षत्र कितने प्रकार के होते हैं।
4 ज्योतिष में 27 नक्षत्र कौन से होते हैं।
5 कैसे अपना नक्षत्र पता करें।
6 कौन से नक्षत्र लाभकारी होते हैं।
7 कौन से नक्षत्र हानि देते हैं।
8 कौन सा नक्षत्र भाग्यशाली होता है।
9 कौन कौन से नक्षत्र से रोग होते हैं।
10 नक्षत्र से होने वाले रोगों का निदान कैसे होगा।
11 ज्योतिष में नक्षत्र सूची।
12 नक्षत्र की विशेषताएं।
13 नक्षत्र का स्वामी पति।
14 सबसे शुभ नक्षत्र।
15 सबसे खराब नक्षत्र कौन सा होता है।
16 सबसे शक्तिशाली नक्षत्र कौन सा होता है।
17 ज्योतिष में नक्षत्र की वर्गीकरण श्रेणी कौनसी है।
18 खोई हुई वस्तु मिलेगी या नहीं मिलेगी ? उन नक्षत्रो को दी जाने वाली संज्ञा क्या है।
19 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तु शीघ्र मिलेगी।
20 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तु नहीं मिलेगी।
21 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तु पता लगाने पर भी नही मिलेगी।
22 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तु बहुत संघर्ष पता करने पर मिलेगी।
23 ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र में किसी भी नक्षत्र का दोष युक्त होने पर जातक नक्षत्र का उपाय कर जीवन को धनवान खुशहाल आनन्दमय शांतिमय बनाएं। बी
1 नक्षत्र क्या है:-
सौर मंडल में तारो के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ये एक परिधि चक्र से चन्द्रमा के मार्ग से क्रम में जुड़े हैं। हमें वस्तुत: में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र समझना उचित नही है। हमारे चारो वेद ग्रंथो में से ऋग्वेद में एक जगह पर भानू को भी नक्षत्र लिखा गया है। अनंत आदि नक्षत्रों में सप्तर्षि व अगस्त्य हैं।
2 नक्षत्र का इतिहास:-
हमारे भारत के वेद ग्रंथों में मान्यता है कि नक्षत्र शब्द सबसे पहले नक्ष से लिया गया है, उसका मतलब है नक्शा, और सितारा एक सितारा होता है। नक्षत्र का शब्द का अर्थ तारों का नक्शा है। पूर्व इतिहास यह भी जानकारी देता है कि नक्षत्रों का अग्रणी परिचय ऋग्वेद में पूर्व से है। वास्तव में आपको यजुर्वेद और अथर्ववेद में 27 नक्षत्रों व 2 गुप्त नक्षत्र की पूरी तालिका मिल जाएगी।
3 नक्षत्र कितने प्रकार के होते हैं:-
सौर मंडल में 27 तारों के समूह के मध्य से चंद्रमा निकलता है वही भिन्न भिन्न 27 नक्षत्र के नामो से पहचाने जाते हैं। इस प्रकार हमारा सारा सौर मंडल इन्हीं 27 नक्षत्र समूहों में भांटा हुआ है। और चंद्रमा का प्रत्येक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में समायोंजित है।
4 ज्योतिष में 27 नक्षत्र कौन से होते है :-
सौर मंडल में 27 तारों के समूह के मध्य से चंद्रमा निकलता है वही भिन्न भिन्न 27 नक्षत्र के नामो से पहचाने जाते हैं। इस प्रकार हमारा सारा सौर मंडल इन्हीं 27 नक्षत्र समूहों में भांटा हुआ है। और चंद्रमा का प्रत्येक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में समायोंजित है।
27 नक्षत्रो की सूची क्रम अनुसार :-
शुरु से क्रम नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है। जो 0 से 360 डिग्री तक आते है।-अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। दो गुप्त नक्षत्र है, जिसमे एक भी अभिजीत है।
5 ज्योतिष में कैसे अपना जन्म नक्षत्र पता करे:-
जिस जातक का जन्म जिस तारीख़ में हुआ है। वो उसका जन्म दिन है। जन्मदिन को कैलेंडर और पंचांग की सहायता से हम ज्ञात कर सकते है, की उस दिन क्या वार था? क्या तिथि थी?
कोनसा पक्ष चल रहा है, शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष। उसी में ही नक्षत्र कोनसा चल रहा है। कितने बजे शुरू हुआ है। कितने बजे समाप्त होगा। उस टाइम को कितने से कितने बजे तक का समय घंटो में नोट कर लो। लगभग 22 से 24 घंटे होता है।
उस टाइम को 4 से भाग दे। वो नक्षत्र जितने बजे शुरू हुआ है। उस भाग फल समय को उसमे जोड़ दे। वो उस नक्षत्र का पहला चारण, अगला भागफल फिर जोड़े। उसका दूसरा चरण आ जायेगा। इस प्रकार चारो चरण ज्ञात कर सकते हैं। चारो चरण में अलग अलग अक्षर भी होते है। जिस जातक के पास जन्म का नाम अपनी जन्म तिथि अनुसार रखा गया है। वो भी जन्म नक्षत्र चरण ज्ञात कर सकते है। और आगे के भाग में आपको पर्त्येक नक्षत्र की जानकारी विस्तार पूर्वक कमज़ोर जातक को आसान उपाय की जानकारी दी जाएगी जिससे जातक अपना जीवन खुशहाल बना सकता है।
ऑनलाइन नेट गूगल पर भी नक्षत्र कैलकुलेटर भी होते है। उनकी सहायता से भी जन्म नक्षत्र जान सकते है।
6 ज्योतिष में कोनसा नक्षत्र सबसे अधिक लाभकारी होता है:-
ज्योतिष में सभी 27 नक्षत्रो में पवित्र पुष्य नक्षत्र लाभकारी है।
यह 27 नक्षत्रो में आठवां नक्षत्र है। इस नक्षत्र में सोना-चांदी आभूषण, वाहन, साधन, वस्त्र, बर्तन, मकान दुकान प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं।
यह सभी नक्षत्रों में पवित्र और पूजनीय श्रेष्ठ है।
ये सभी विद्वानों द्वारा सबसे अच्छा उत्तम माना जाता है।
अब इस नक्षत्र में बहुत सी विशेषताएं हैं। ये आगे क्रम अनुसार पुष्य नक्षत्र के रोचक लाभकारी जानकारी बारे मे जानेंगे।
7 ज्योतिष में कोनसा नक्षत्र हानि देता है
हमारे वैदिक शास्त्रों के अनुसार कुल 27 नक्षत्र का विवरण है। उनमें से कुछ नक्षत्र लाभकारी और कुछ नक्षत्र को हानिकारक होते है। यह हानिकारक नक्षत्र ही गण्डमूल नक्षत्र माने जाते हैं। वैदिक शास्त्रों के अनुसार ये नक्षत्र है, अश्विनी, आश्लेषा, मघा, जेष्ठा, मूल व रेवती हैं। इन छः नक्षत्रो की मान्यता है कि इस नक्षत्रों में जन्म लेने वाला बालक मां-बाप, परिवार और खुद अपने को मिटाने वाला होता है। छः नक्षत्र पूरी तरह हानिकर प्रभाव ही है। यह कहना सही नहीं है, चूकि इस नक्षत्रों का व्यक्ति पर अच्छा और बुरा मिश्रित प्रभाव भी होता है। इसका असर इन छः नक्षत्रों में किन्ही एक से चंद्र की कुंडली स्थिति व नक्षत्र कोनसे भाव में है। इनको गणना कर सुनिश्चित करा जाता है। वैसे ही वापिस 27 दिन के उपरांत छः नक्षत्र में से वापिस आता है।
इसके 4 भाग से निश्चित होता है इसका जातक पर असर,
इन छः नक्षत्रों में इनके 4 चरण या भाग होते हैं, और इन्हीं भागो के गणित से जन्म लेने वाला शिशु पर पुरा असर की गणना की जाती है। यह गणित इस प्रकार होता है।
अश्वनी नक्षत्र के
प्रथम चरण/भाग में जन्म लेने वाले शिशु को माता-पिता को अनिष्ट या डर होता है।
दूसरे भाग में पिता दादा को कष्ट अपने लिए सुख-साधन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जातक जिद्दी होता है।
मघा नक्षत्र
नक्षत्र के प्रथम चरण/भाग में जन्म लेने वाले शिशु को माता-पिता को अनिष्ट या डर होता है।
दूसरे भाग में पिता दादा को कष्ट अपने लिए सुख-साधन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जातक जिद्दी होता है।
तीसरे भाग में मंत्रीयो की तरह ऊंचा स्थान उपलब्ध होता है,और
चौथे भाग में दूषित नही हुआ तो, जातक खुद अपनो और अन्य जो जुड़े है जातक से उन्हें भी राजा से मान-सम्मान उपलब्ध होंता है।
पहले चरण में माता को कष्ट मिलता है। दूसरे चरण में पिता को भय होता है। तीसरे चरण में सुख प्राप्ति होती है।
जेयष्ठा नक्षत्र
नक्षत्र के प्रथम चरण/भाग में जन्म लेने वाले शिशु को माता-पिता को अनिष्ट या डर होता है।
दूसरे भाग में पिता दादा को कष्ट अपने लिए सुख-साधन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जातक जिद्दी होता है।
तीसरे भाग में मंत्रीयो की तरह ऊंचा स्थान उपलब्ध होता है,और
चौथे भाग में दूषित नही हुआ तो, जातक खुद अपनो और अन्य जो जुड़े है जातक से उन्हें भी राजा से मान-सम्मान उपलब्ध होंता है।
पहले चरण में बड़े भाई को कष्ट होता है। दूसरे चरण में छोटे भाई को कष्ट होता है। तीसरे चरण में माता का नाश होता है, और चौथे चरण में पिता का नाश होता है।
मूल नक्षत्र
नक्षत्र के प्रथम चरण/भाग में जन्म लेने नक्षत्र के प्रथम चरण/भाग में जन्म लेने वाले शिशु को माता-पिता को अनिष्ट या डर होता है।
दूसरे भाग में पिता दादा को कष्ट अपने लिए सुख-साधन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जातक जिद्दी होता है।
तीसरे भाग में मंत्रीयो की तरह ऊंचा स्थान उपलब्ध होता है,और
चौथे भाग में दूषित नही हुआ तो, जातक खुद अपनो और अन्य जो जुड़े है जातक से उन्हें भी राजा से मान-सम्मान उपलब्ध होंता है। शिशु को माता-पिता को अनिष्ट या डर होता है।
दूसरे भाग में पिता दादा को कष्ट, अपने लिए सुख-साधन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जातक जिद्दी होता है। तीसरे भाग में मंत्रीयो की तरह ऊंचा स्थान उपलब्ध होता है,और चौथे भाग में दूषित नही हुआ तो, जातक खुद अपनो और अन्य जो जुड़े है जातक से उन्हें भी राजा से मान-सम्मान उपलब्ध होंता है।
रेवती नक्षत्र नक्षत्र के प्रथम चरण/भाग में जन्म लेने वाले शिशु को माता-पिता को अनिष्ट या डर होता है।
दूसरे भाग में पिता दादा को कष्ट अपने लिए सुख-साधन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जातक जिद्दी होता है।
तीसरे भाग में मंत्रीयो की तरह ऊंचा स्थान उपलब्ध होता है,और
चौथे भाग में दूषित नही हुआ तो, जातक खुद अपनो और अन्य जो जुड़े है जातक से उन्हें भी राजा से मान-सम्मान उपलब्ध होंता है।
गड मूल नक्षत्र का पहला भाग राजा के समान का सुख देता है।
दूसरा भाग मंत्री के पद की भांति सुख देता है।
तीसरे भाग दौलत का सुख देता है, और
चौथे भाग में अलग-अलग तरह के कष्ट देता है। लगभग विद्वानों द्वारा इनका वर्णन समय अनुसार स्थिति-परिस्थिति में गण्डमूल नक्षत्र का प्रभाव पूर्ण तरीके हानिकारक होता है, ठीक नहीं है।
गण्डमूल में जन्म लेने वाले बच्चे का चेहरा 27 दिन तक उसका बाप को नहीं देखे। वास्तव में प्रसूति के उपरांत नहाने के पश्चात शुभ समय में ही बाप को बच्चे का मुंह दिखाना लाभकारी माना माना जाता है।
8 ज्योतिष में कौनसा नक्षत्र सबसे अधिक भाग्यशाली होता है।
ज्योतिष में सभी 27 नक्षत्रो में पवित्र पुष्य नक्षत्र लभकारी है। यह 27 नक्षत्रो में आठवां नक्षत्र है। इस नक्षत्र में सोना-चांदी आभूषण, वाहन, साधन, वस्त्र, बर्तन, मकान दुकान प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं। यह सभी नक्षत्रों में पवित्र और पूजनीय श्रेष्ठ है। ये सभी विद्वानों द्वारा सबसे अच्छा उत्तम माना जाता है।
अब इस नक्षत्र में बहुत सी विशेषताएं हैं। ये आगे क्रम अनुसार पुष्य नक्षत्र के रोचक लाभकारी जानकारी बारे मे जानेंगे।
9 ज्योतिष में कौन कौन नक्षत्र से रोग होगै? शरीर पर रोग नक्षत्र के कारण कितना समय रहेगा ? शरीर पर नक्षत्र के कारण रोग कब तक ठीक होगे?
नक्षत्रो के अनुसार मानव शरीर पर रोग की आने प्रकृति बनी रहती है । सभी नक्षत्र में से कुछ नक्षत्र सामान्य रोग देते हैं। जो क्षणिक घंटो में, कुछ रोग दिनों में, कुछ रोग सप्ताह में, कुछ रोग महीने में, कुछ रोग साल में, कुछ रोग सालो में ठीक होते हैं। अपवाद में कुछ नक्षत्र में बीमारी जीवन भर या मृत्युतुल्य भी हो जाती है।
वैदिक ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र क्रमवार हैं। इनके अलग एक 28वां नक्षत्र अभिजित भी होता है। जिसे गुप्त नक्षत्र कहते हैं। चूंकि, इन्ही 27 नक्षत्र के अंदर ही मानव की उत्पति होती है और मान्यता है कि जिस नक्षत्र में मानव का आगमन होता है। उसी नक्षत्र का असर तो उस मानव पर पड़ता है। उसी जन्मनक्षत्र से संबंध रखने वाले रोग भी होने की अधिकांशता संभावनाये अधिक रहती है। मतलब किसी भी जातक को अनुवांशिक रोग न हो तो भी दूसरी बीमारियां के असर नक्षत्र से मिलते हैं। वैदिक ज्योतिष में सभी एक नक्षत्र का संबंध कई खास रोगों से माना जाता है। इसलिए आपको आगे बताएंगै कि किस – किस नक्षत्र से कौन कौन से गंभीर रोग संबंधित होते है।
नक्षत्रो के क्रमांनुसार जानें रोगों का वर्णन:-
अश्विनी
अश्विनी नक्षत्र में अर्द्ग-वात, पूर्ण निद्रा नही आना, एवं ध्यान भ्रमित होना, ऐसे रोग होते है। इस अश्वनी नक्षत्र में मानव का आगमन होता हैं। तो वह जातक इस नक्षत्र से जुड़े रोगों के हो जाने की संभा-वना अधिक हो जाती है। इससे होने वाले रोग मानव की जन्म-कुंडली में विराजमान ग्रहों के अनुसार पहले से नोवे या पच्चीस वे दिन तक रहगै।
भरणी
भरणी नक्षत्र में उत्पन्न जातक को तेज अंदुरनी ज्वर, शरीर दर्द और कमजोरी या बिहोंशी से जुड़े रोग हो जाने की संभा-वना अधिक हो जाती है। भरणी नक्षत्र में रोग ग्यारह, इकीस और तीस दिन तक रह सकते है।
कृत्तिका
कृतिका नक्षत्र के जातक को पेट दर्द, शूल वेदना, पूर्ण निद्रा नही आना, व आंखो की बीमारी हो जाने की संभा-वना अधिक हो जाती हैं। कृतिका नक्षत्र में रोग नोंवे, दसवें और एकिस वे दिन तक रहगै।
रोहिणी
रोहणी नक्षत्र के जातक को आधा माथा पीड़ा, बुद्धि भ्रमित, उदर शूल नाभि से उपर आदि रोग होने की संभा-वना अधिक हो जाती है । रोहणी नक्षत्र में रोग तीन दिन से लेकर 10 दिन तक चल सकते है।
मृगशिरा
मृगशीरा नक्षत्र में त्रि-दोष, चमड़ी की बिमारी व कई बार श्वास-एलर्जी, चमड़ी की एलर्जी हो जाने की संभा-वना होती है। मृगशिरा नक्षत्र में रोग 3 दिन से 9 दिन तक रह सकते है। परन्तु लापरवाही उपचार नही लेने पर सालो तक रोग जातक को प्रभावित करता है।
आर्द्रा
आर्द्रा नक्षत्र में जातक को वायु-वात विकार से जुड़े रोग के साथ स्नायु-रोग व कफ संबं-धित बिमारी हो जाने का भय होता है। आर्द्रा नक्षत्र में उत्पन्न रोग दस दिन या महीने भर तक रह सकते है। परन्तु लापरवाही उपचार नही लेने पर सालो तक रोग जातक को प्रभावित करता है।
पुनर्वसु
पुनर्वसु नक्षत्र में नाभि से निचे पीड़ा, माइग्रेन और गुर्दे की थैली में रुकावट, समं-धित बिमारी होने आसार होते हैं। समान्य बीमारी होने पर ईसका प्रभाव दस दिन से पंद्रह दिन भी रहता है।
पुष्य
पुष्य नक्षत्र जातक को तीव्र ज्वर लाता है। शरीर में पीड़ा और आकस्मिक हो जाने वाली पीड़ा बिमारिया भी शरीर लाता है। इस नक्षत्र में शुरू में रोग दस दिन रहता है।
आश्लेषा
अश्वलेषा नक्षत्र सभी प्रकार की पीड़ा पहुंचाने वाला नखत्र है। रोग किसी भी प्रकार का हो मृत्यु-जन्य पीड़ा देने वाला होता है। अश्वलेषा नक्षत्र में जातक को शरीर में रोग-विकार हो जाते हैं । वो जातक को सात दिन से लेकर 28 वे दिन तक पीड़ा पहुंचाते हैं।परन्तु लापरवाही उपचार नही लेने पर सालो तक रोग जातक को प्रभावित करता है। जातक को रोग मृत्युजन्य भी साबित हो जाता है।
मघा
मघा नक्षत्र वात के रोग, पेट के रोग और मुँह के छालों की बिमारी से संबं-धित रखता है। मघा नक्षत्र में लगा हुई बिमारी 21 दिन से लेकर 51 दिन तक बनी रहती है।
पूर्वाफाल्गुनी
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में कान की बिमारी, माइग्रेन, अति-ज्वर और तीव्र-पीड़ा होती है। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में रोग होने पर 7/14/28 दिन जातक को पीड़ा पहुंचाता है ।परन्तु लापरवाही उपचार नही लेने पर सालो तक रोग जातक को प्रभावित करता है। जातक को रोग मृत्युजन्य भी साबित हो जाता है।
उत्तराफाल्गुनी
उतराफाल्गुनी नक्षत्र में लालपित्त-ज्वर, दुर्घटना हड्डी टूटना, और सर्व प्रकार की वेदना आ सकती है। उतराफाल्गुनी नक्षत्र में रोग आने पर वह रोग 7 वे या 14वे और 28 दिन तक बना रहता है।
हस्त
हस्त नक्षत्र पेट दर्द, पेट में जलन और पेट में कीड़े, आदि बहुत से रोग होने की संभावना रहती है। अगर हस्त नक्षत्र में रोग होता है तो वह 5/10/15 और 28 दिनों तक बना रहता है।
चित्रा
चित्रा नक्षत्र से समंधित जातक अति कष्टकारक और आकस्मिक-दुर्घटना अन्य वेदनाओं में आकस्मिक गिर जाता है। चित्रा नक्षत्र में होने वाली बिमारी 7/12 और 21 दिन में ठीक होती है
स्वाती
स्वाती नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक गंभीर बिमारी से ग्रसित हो जाते है ईनका समय पर उपाय और चिकत्सा नहीं होती है। तो जातक पर बिमारी का असर साल भर तक बना रह सकता है।
विशाखा
विशाखा नक्षत्र वात-रोग (वायु रोग) से जातक को बिमारी देता है, हड्डी जोड़ पीड़ा, सारे शरीर में वेदना, की बिमारी देता है। विशाखा नक्षत्र में कोई रोग होता है तो वह सात दिन से तीन महीने तक ठीक हो सकता है।
अनुराधा
अनुराधा नक्षत्र में तीव्र ज्वर, आधा माथा दर्द, और एलर्जिक बीमारियां हो सकती हैं।अनुराधा नक्षत्र में जातक को बिमारी हो जाती हैं तो जातक को सात दिन से लेकर 42 साल तक बनी रह सकती है।
ज्येष्ठा
ज्येष्ठा नक्षत्र में शरीर-कंपन, शरीर-शिथिलता और छाती संबंधीत बिमारी होजाती हैं। रोग हो जाने पर वह 14, 20 अथवा 28 दिन तक चलता है। परन्तु लापरवाही उपचार नही लेने पर सालो तक रोग जातक को प्रभावित करता है। जातक को रोग मृत्युजन्य भी साबित हो जाता है।
मूल
मूल नक्षत्र पेट के रोग, मुंह में छाले और आंखो की बीमारी से पीड़ा होती है, मूल नक्षत्र में बीमारी हो जाने पर वह सात दिन से लेकर जीवनभर जातक को रहती है।
पूर्वाषाढ़ा
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को किडनी, मधुमेह, धातुनाश, शीथलता और गुप्त रोग होने का खतरा रहता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में उत्पन्न हुई बिमारी 14 से 21 दिन बनी रहती है और जातक इस कुछ दिन में बीमारी ठीक नहीं होती तो जातक 10 दिन, 4 और 7 महीने तक ग्रसित रहेगा । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में आई हुवे रोग किसी भी प्रकार के हो उन रोगों का पुनर-आगमन भी हो जाता है
उत्तराषाढ़ा
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में पेट से समंधित बीमारी, कमर दर्द तथा जातक के शरीर में कई प्रकार के पीड़ा होने वाली बिमारी होती हैं। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को हुई बीमारी 21 से 41 दिन तक बनी रहती हैं।
श्रवण
श्रवण नक्षत्र आंत-रोग, लिवर-हैजा, अल्सर, कैंसर, मूत्र-मार्ग में रुकावट, और कब्ज आदि रोग होने वाले होते है। श्रवण नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को रोग सात दिन से लेकर 28 दिन तक हो सकता हैं।
धनिष्ठा
धनिष्ठा नक्षत्र में लीवर अग्नाशय, वात-पित-कफ और किडनी की बीमारी होती हैं।धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को बिमारी 14 दिन तक रहती है। कई बार महीना साल भर तक भी रहती है।
शतभिषा
शतभिषा नक्षत्र में मस्तिष्क में बुखार, मानसिक शारीरिक आघात और भयंकर मस्तिष्क बुखार हो जाता है। शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को बिमारी 7/14//28 और 45 दिन रहती हैं।
पूर्वाभाद्रपद
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में उल्टी, बैचनी, नाभि से उपर दर्द और मस्तिष्क की बीमारी होती हैं। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को बिमारी 5 से 7 दिन तक रहती हैं।परन्तु लापरवाही उपचार नही लेने पर सालो तक रोग जातक को प्रभावित करता है। जातक को रोग मृत्युजन्य भी साबित हो जाता है।
उत्तराभाद्रपद
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में दाँत में दर्द, वात-पित और मस्तिष्क बुखार से होने वाली बिमारी आती हैं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को बिमारी सात दिन से लेकर 41 दिन तक पीड़ा बनाएं रखती है।
रेवती
रेवती नक्षत्र में मस्तिष्क के रोग अधिक होते हैं, मन का भय, अनादि बीमारी और वात-पित रोग इसी नक्षत्र से होते हैं। रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को बिमारी 10 दिन से 41 दिन तक कष्ट दे सकती हैं।
27 नक्षत्र में से जातक का कोई भी एक नक्षत्र में जन्म हुआ है। ईस प्रकार जातक होने वाले रोगों से अपना बचाव का उपाय से प्रयास करके ठीक रह सकते हैं।
10 नक्षत्र से होने वाले रोगों का निदान/ उपाय निम्न प्रकार है:-
अश्वनी नक्षत्र
धर्म कर्म रोगियों की सेवार्थ से लाभ होता है। लहसुनियां रत्न धारण करने से लाभ होता है।
भरणी नक्षत्र
असहाय लोगों का साथ दें, हीरा रत्न, सिफीटिक या सफेद जरकन अंगूठी में धारण करें इससे जातक को लाभ होगा।
कृतिका नक्षत्र
सूर्य पूजा, सूर्य मंत्र जाप, दशांश हवन , माणिक्य रतन धारण करने से लाभ होगा।
रोहणी नक्षत्र
सफेद आक की जड़ को बाजू में बांधने से, मोती की अंगूठी को उंगली में धारण करने से लाभ होगा।
मृगशिरा नक्षत्र
मंगलवार देव हनुमान जी का व्रत, मूंगा रत्न अंगूठी में उंगली में धारण करने से लाभ होगा।
आर्द्रा नक्षत्र
माता सरस्वती के 108 नाम माला स्त्रोत का 5 बार पाठ करें, गोमेद रत्न अंगूठी में हाथ में धारण करने से लाभ होगा।
पुनर्वसु नक्षत्र
किसी धर्म स्थान में दान करें, पुखराज या सुनेला रत्न अंगूठी में धारण करने से लाभ होगा।
पुष्य नक्षत्र
पुरानी पीपल के पेड़ की सेवा करें, पीपल की सेवा का रविवार को त्याग करें, काले तिल काले माह दान करें।
अश्वलेषा नक्षत्र
पान की जड़ कलाई से बाधे, बुधवार व्रत रखे, पन्ना रत्न अंगूठी में उंगली धारण करने से लाभ होगा।
मघा नक्षत्र
नहर के पानी चलते हुए पानी में स्नान करने से, नहर या नदी में मछलि1यों को भोजन देने से लाभ होगा।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र
गाय को गुड़ और रोटी खिलाने से, गाय की सेवा से, लाभ होगा।
उतरा फाल्गुनी नक्षत्र
सूर्या आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ रोजाना सुबह करे, लाल रंग की मिठाई बांटे।
हस्त नक्षत्र
तालाब में जीवो को जौ और आटे की गोलियां खिलाएं, मोती का दान करें,
चित्रा नक्षत्र
हनुमान देव जी मन्दिर में लड्डू या बूंदी का प्रसाद मंगलवार को भोग लगाएं और बांटे।
स्वाती नक्षत्र
सरस्वती चालीसा पाठ रोजाना करे, सरस्वती मां के चरणों में नीले पुष्प अर्पित करें, फिरोजा दान करने से लाभ होगा।
विशाखा नक्षत्र
गुरुवार का वर्त शुद्धता से करे, पीली वस्तुओ का मीठे का सेवन करें, गुरुवार को नमक नही खाए, बाल-नाखून नही काटने से लाभ होगा।
अनुराधा नक्षत्र
भैरव मंदिर में सरसो के तेल का दीपक जलाएं, दो लड्डू पीले रंग के प्रसाद भैरव मंदिर में बुधवार शनि hu hu huवार को चढ़ाने से लाभ होगा।
ज्येष्ठा नक्षत्र
दुर्गा मन्दिर में मां के चरणों में अष्टमी तिथि हलवा पूरी चने खीर का प्रसाद चड़ाकर ग्रहण करने से लाभ होगा।
मूल नक्षत्र
बाल गणेश मन्दिर में दुर्वा और 5 पेड़े का प्रसाद चढ़ाएं, टाइगर रत्न का दान करने से लाभ होगा।
पूर्वा आषाढ़ नक्षत्र
शुक्रवार को कमल पर विराजमान शेषनाग के छत्र से सुशोबित पद्मावती देवी को साबत चावलों की खीर प्रसाद चढ़ाएं परिवार प्रत्येक व्यक्ति को खिलाए, शीघ्र लाभ होगा।
उतरा आषाढ़ नक्षत्र
पूर्णिमा का वर्त करे, लक्ष्मी नारायण की कथा करे, लक्ष्मी नारायण की सेवा करने से लाभ होगा।
श्रवण नक्षत्र
सोमवार का वर्त करे, शिवलिंग पर दूध जल चढ़ाएं, चरणामृत जरूर ग्रहण करे, शीघ्र लाभ होता है।
धनिष्ठा नक्षत्र
हनुमान देव जी मन्दिर में पारे का सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं सब प्रकार रोगों का निदान हो जाता है।
शतभिषा नक्षत्र
चार सिक्के एक जैसे धर्म स्थान बुधवार से शनिवार् तक रोजाना दान करने से लाभ होगा।
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र
अपने कुल देवी देवता का दूज का वृत करे, शुद्धता का पालन करें, गाय बैल को हरा चारा खिलाएं।
उतरा भाद्रपद नक्षत्र
सरसो के तेल का दीपक काली मन्दिर, शनि मन्दिर में शनीवार को संध्या में जलाएं, शीघ्र लाभ होता है।
रेवती नक्षत्र
5 जमीन के हैंडपंप का पानी मिलाकर सेवन करने से सेहत में सुधार होना शुरू हो जाएगा।
11 ज्योतिष में नक्षत्र की सूची क्रमवार निम्न प्रकार है:-
अश्वनि, भरणी, कृतिका, रोहणी,मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा , उत्तरा फाल्गुनी,हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा,ज्येष्ठा,मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।
- ज्योतिष में 27 नक्षत्र की विशेषताएं:-
हम सब आम तौर में एक जगह से दूसरे जगह की दूरी मीटर, कोस या किलोमीटर में आंकी जाती है, वैसे ही सौर मंडल की दूरी नक्षत्रों से जानी जाती है।
विद्वानों ने हमारे सौर मंडल को 88 नक्षत्र विभागो में बांटा है, तो हमारे सनातनी विद्वानों ने 28 नक्षत्र भागो में भांटा । सौर मंडल के 12 भागों को राशियों में बांटने के बाद भी सनातनी विद्वानों ने इसमें और गहन मंथन से 27 भागों में बांटा । जिसमें 20 मिनट में 13 डिग्री पर एक नक्षत्र निकला।
शुरु से क्रम नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है। जो 0 से 360 डिग्री तक आते है।-अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। दो गुप्त नक्षत्र है, जिसमे एक भी अभिजीत है।
हमारे गगन में चांद भूमि के चारों चलता है। चांद अपनी कलास पर चलता हुआ 27.3 दिन में भूमि की एक चक्र पूरा करता है। इसी प्रकार प्रत्येक राशि में 2.25 नक्षत्र रहता है चूंकि प्रत्येक नक्षत्र को 4 भागो (चरणों) में विभाजित किया है। इस प्रकार प्रत्येक राशि को 9 भाग (चरण) होते हैं। इसी प्रकार 12 राशियों को 108 भागो(चरणों) में भांटा गया, ये ही ‘नवांश’ जानते है और 108 की अंक की शुभता के कारण इन्हीको नक्षत्र-चरण’ विभाजन माना गया है।
अश्विनी नक्षत्र सौर मंडल में पहला नक्षत्र है। यह 3 तारों के साथ है, हमारे सौर मंडल में जनवरी के शुरु से ही सूर्य के अस्त होने के बाद सिर पर दिखाई देता है। आदिकाल में दो अश्विनी कुमार हुवे। उनका नाम पर ही इन नक्षत्रों का नामकरण किया गया है। ‘अश्विनी’ का अर्थ घोड़े जैसा’ होता है। भूमि पर इस नक्षत्र का असर पड़ता है। आंवले के पौधे को इसका प्रतीक-चिन्ह माना जाता है।
अश्विनी नक्षत्र में पैदा हुवे व्यक्ति विशेषताएं
अश्विनी नक्षत्र :
जातक का जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो उस की राशि मेष व जन्म का नक्षत्र मालिक गृह केतु होगा। जातक पर मंगल व केतु का प्रभाव उस के जीवन पर बहुत दिखाई देगा। ज्योतिष पंचाग में अवकहड़ा चक्र में जातक का वर्ण क्षत्रिय, वश्य चतुष्पद, योनि अश्व, महावैर योनि महिष, गण देव तथा नाड़ी आदि होती हैं।
प्रतीक चिन्ह : अश्व
रंग : लाल रक्त
भाग्यशाली अक्षर : चा और ला
पोधा : आंवला।
राशि स्वामी : मंगल।
देव : केतु, अश्विनी कुमार।
शारीर का गठन : राजकुमार जैसा, स्थूल व राजसी शरीर। आकर्षन रुप के साथ सुंदर आँखें, बड़े गाल वाले होते हैं।
वैभव सुख : धनि तथा भाग्यशाली होता है। जातक सब प्रकार की संपत्ति को मिलने का योग वाला, जीवन साथी और कंचन तथा संतान से सुख प्राप्त करता है।
भरणी नक्षत्र
भरणी नक्षत्र सौरमंडल का द्वितीय नक्षत्र है। राजा दक्षेसर की दो नंबर पुत्री का नाम भरणी था। जिसका विवाह चंद्र के साथ हुआ। उसी के नाम पर ही इस नक्षत्र का नाम पड़ा है।
भरनी नक्षत्र में पैदा हुए जातक साहस रखने वाले ऊर्जावान होते हैं, और अर्थ का ज्ञान रखने वाले होते हैं।
भरणी नक्षत्र में जिस जातक का जन्म होता है। उसकी राशि मेष होती है। नक्षत्र का स्वामी शुक्र है ।जातक पर जीवन भर शुक्र और मंगल का निश्चित प्रभाव बना रहता है। मंगल जातक को साहस ऊर्जावान आक्रमक अग्रणी बनाता है। शुक्र जातक को धनी अर्थ राजसिक सौंदर्य ने रुचि रखता है।
भरणी नक्षत्र का जातक पर बुरा प्रभाव
जिस जातक की
भरणी नक्षत्र का उत्तम फल:-
भरणी नक्षत्र में पैदा होने वाले जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह और मंगल ग्रह की स्थिति और उनकी डिग्री और उनके ग्रह और भाव की डिग्री अगर सही और समुचित हैं, तो जातक को जीवन में बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं ।जातक चरित्रवान साहसी अपने कार्य में दक्ष होता है। जातक हिसाब किताब का माहिर 1 को संभाल कर रखने वाला होता है ।धन का सरंक्षण करने वाला होता है। अपने जीवनसाथी के प्रति पूर्ण रूप से चरित्रवान एक ईमानदार होता है। जातक ईश्वर का भक्त होता है। जातक की देह से सुगंध का प्रसार होता है।
कृतिका नक्षत्र
कृत्तिका नक्षत्र में पैदा हुवे जातक के लक्षण होते हैं।
हमारे सौर-मंडल में सितारों की जुटता को नक्षत्र कहते हैं। वैदिक ज्योतिष-आचार्यों ने हमारे सौर-मंडल को 27 नक्षत्र मंडल भाग में बांटा है। नक्षत्रों की सूचना की इस जानकारी में से जानिए नक्षत्र कृतिका या कृत्तिका।
कृत्तिका नक्षत्र सौर-मंडल में तीसरे स्थान का नक्षत्र है। कृत्तिका नक्षत्र का स्वामीपति ग्रह सूर्य है,व राशि वृषभ है। इसमें होने वाले जातक का रंग दूधिया और पेड़ गूलर होता है। कृतिका नक्षत्र आसमान में अग्नि-चोटी के तरह दिखने वाला होता है। कृत्तिका नक्षत्र खुले चक्षुओं से देखने पर छः सितारों का एक ग्रुप है, जो आसमान में आंखो के निकट दिखता है। चूकि इसमें सौ से अधिक सितारे होते हैं।
वृष राशि में कृत्तिका नक्षत्र के लास्ट 3 चरण होते हैं। नक्षत्र स्वामीपति सूर्य ग्रह है, व राशि स्वामीपति शुक्र ग्रह है। अवके-हड़ा सारणी के क्रमनुसार कृत्तिका नक्षत्र के 1 चरण में पैदा होने वाले जातक की जन्म की राशि मेष, राशि स्वामीपति मंगल, और अंतिम तीन चरणों में पैदा होने वाले जातक की राशि वृषभ और राशि स्वामीपति शुक्र ग्रह है। इस प्रकार जातक पर मंगल ग्रह, सूर्य ग्रह और शुक्र ग्रह का उम्र-भर असर बना रहता है।
कृतिका नक्षत्र में पैदा होने वाले जातक का शरीरऔर ह्रदय कोमल होता है। परन्तु स्वास्थ्य अच्छा होता है। 1 चरण में पैदा होने वाले जातक शारीर से बदन गठिला होता है। संगनी और आवास सुख बना रहता है, और इस प्राकार का जातक प्रसिद्ध भी होता है।
कृतिका नक्षत्र में पैदा होने वाले जातक तेजवान, बुद्धिमांन, सिद्धान्तवादी, अभिलाषी, प्रेम स्वभाव वाले, क्षमाशील हृदय, दोस्ती बनाने और निभाने वाले, सामाज के कार्यकलाप में रुचि रखने वाले, मेहमान-नवाजी, सत्कर्म करने वाले, माहौल के अनुसार कलादक्ष एवं कला-विज्ञान में दक्ष, नाट्य और अभिनय क्षेत्र में आनंद लेने वाले होते हैं।
जातक की कुंडली में सूर्य ग्रह व शुक्र ग्रह की पोजिशन अनुकूल नहीं है तो कर्ता उदास, गरीब,भुख से पीड़ा, सत्य को गुमा कर प्रदर्शित करने वाल, बिना धन के, पर स्त्री आसक्त, बिना काम के घूमने वाला, कड़वी भाषा बोलने वाला, दु:खी और कर्तव्य का पालन नही करने वाला, इसके साथ ही जीवन गतिविधि आराम से और विलासिता प्रेम करने वाले, जुवे और सटे में आनन्द लेने वाला होता है।
रोहणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र के देव श्री ब्रह्माजी हैं।
- रोहणी नक्षत्र का स्वामीपति शुक्र ग्रह है,
- योग- शुभ सौभाग्य है।
- जाति- स्त्रीलिंग,
- रोहणी नक्षत्र जातक स्वभाव से सौम्य,
- रोहिणी नक्षत्र जातक की आंखे बड़ी बड़ी होती हैं।
- वर्ण- शूद्र होता है , व इसकी विंशोतरी महा दशा स्वामीपति ग्रह चंद्रमा है।
- रोहिणी वातावरण के किसी भी विशेष-स्थान के मध्यमवर्ती प्रदेश को संकेतिक करता है। इसी के कारण कोई भी स्थान के बीच भाग स्थल के प्रदेश में होने वाली परीघटनाओं या परीकारणों के लिए रोहिणी नक्षत्र में होने वाले ग्रह-गोचर को देखना चाहिए।
रोहिणी नक्षत्र को वृषभ राशि का सिरमौर कहा जाता है। रोहणी नक्षत्र में सितारों की गिनती 5 है। चारे वाली गाड़ी जैसा प्रतीत होता है, इस नक्षत्र में फाल्गुण मास के बीच भा-ग में मध्य आसमान में सूर्यास्त की तरफ रात्रि को 7 से 9: 30pm बजे तक के समय में दिखता है। यही कृत्तिका नक्षत्र के सूर्योदय में दक्षिण साइड में दिखाई देता है।
नक्षत्रों के क्रम अनुसार में रोहणी चुतर्थ नंबर पर आ जाने वाला नक्षत्र वृषभ राशि के 11 डिग्री-0′-2” से 22 डिग्री-20′-0” के मध्य है। कोई से भी साल की 25 मई से 9 जून के 15 दिन में इसी नक्षत्र में से सूर्य ग्रह निकलता है। इसी प्र-कार रोहिणी नक्षत्र के हर एक चरण में सूर्य ग्रह लग-भग साडे तीन दिवस रहता है।
जो भी युवती रोहिणी नक्षत्र में पैदा हुई हो वह युवती सौंदर्य, सचेत, पावन, जीवन-साथी की आज्ञा का पालन करने वाले, मातृ -पितृ के सेवक व सेवा का भाव रखने वाले, बेटे-बेटियो से भरपूर, ऐश्वर्यशाली होते है।
- रोहिणी नक्षत्र शुभीत ग्रहों से मिला हो या संबंध होने से नक्षत्र जातक के समुचित शारीर के अंग, उप-अग व होंठो के अंदर, ग्रीवा, जीवा, गला, गले के बिच की हड्डी के रोग का असर हो सकता है।
पुराणक कथा : रोहिणी चंद्रमां की 27 (सत्ताईस) बीवियों में सभी में से सौंदर्य, ओजस्वी, सुं-सजित कपड़े धारित करने वाली होती है। जैसे-जैसे चंद्रमां रोहिणी के समीप आता है, वैसे-वैसे उसी का सौंदर्य अ-धिक खिलता है। चंद्रमां के साथ समिलित होते छिप भी जाते है। रोहिणी चंद्रमा की सौंदर्यवान संगनी है।
मृगशिरा
मृगशिरा नक्षत्र के प्रथम दो भाग दूसरी राशि वृषभ राशि में उपस्थित हैं
और बाद के दो भाग मिथुन राशि में आते हैं, उसी के प्रभाव से इसी नक्षत्र पर राशी वृषभ और इसी के स्वामिपति ग्रह शुक्र और राशि मिथुन तथा इसी के स्वामीपति बुध का पूर्ण असर प्रभावित होता है। इसी प्रकार मृगशिरा नक्षत्र में उत्पन व्यक्ति पर मंगल, बुध और शुक्र का असर जीवनपर्यन्त प्रभावित होता है।
मृगशिरा को अंग्रेजी में ओरियन कहते हैं। मृगशिरा का अर्थ है मृग का शीष। आकाश में यह हिरण के सिर के आकार का नजर आता है। आकाश मंडल में मृगशिरा नक्षत्र 5वां नक्षत्र है। यह सबसे महत्वपूर्ण नक्षत्र माना जाता है!
आर्द्रा नक्षत्र : राहु को आर्द्रा नक्षत्र का अधिपति ग्रह माना जाता है। आर्द्रा नक्षत्र के चारों चरण मिथुन राशि में स्थित होते हैं जिसके कारण इस नक्षत्र पर मिथुन राशि तथा इस राशि के स्वामी ग्रह बुध का प्रभाव भी रहता है।
आर्द्रा नक्षत्र क्या है? कैसे होते हैं इस नक्षत्र में जन्मे जातक
आर्द्रा का अर्थ होता है नमी। आकाश मंडल में आर्द्रा छठवां नक्षत्र है। यह राहु का नक्षत्र है व मिथुन राशि में आता है।
ज्योतिष शास्त्र में शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है-
अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।
आइए जानते हैं :-
आर्द्रा नक्षत्र कई तारों का समूह न होकर केवल एक तारा है। यह आकाश में मणि के समान दिखता है। इसका आकृति हीरे अथवा वज्र की तरह में भी समझा जा सकता है। कई विद्वान इसे चमकता हीरा तो कई इसे आंसू या पसीने की बूंद समझते हैं।
आर्द्रा नक्षत्र मिथुन राशि में 7 अंश से 20 अंश तक लगभग तक रहता है। जून माह के तीसरे सप्ताह में प्रात:काल में आर्द्रा नक्षत्र का उदय होता है। फरवरी माह में रात्रि 9 बजे से 11 बजे के बीच यह नक्षत्र शिरोबिंदु पर होता है। निरायन सूर्य 21 जून को आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करता है।
आर्द्रा नक्षत्र में जन्मे जातक का भविष्यफल…
आर्द्रा नक्षत्र : राहु को आर्द्रा नक्षत्र का अधिपति ग्रह माना गया है। आर्द्रा नक्षत्र के चारों भाग मिथुन राशि में स्थित होते हैं इसी कारण इस नक्षत्र पर मिथुन राशि तथा इस राशि के स्वामी ग्रह बुध का प्रभाव अधिक भी रहता है।
सकारा-त्मक एवं नका-रात्मक पक्ष : –
सकारा–त्मक पक्ष : हंस-मुख, च-तुर, चालाक, जिम्मेदार, समझदार, अनुसंधान में अति रुचि रखने वाले। 30 से 42 के बीच का वर्ष सबसे अच्छा।
नकारा-त्मक पक्ष : यदि बुध गृह और राहु ग्रह की स्थिति ठीक ना हो तो जातक चंचल स्व-भाव, अभि-मानी, दुख पाने वाले, बुरे विचारो वाले व्यसन करने वाले होते हैं। राहु की परिस्थिति अनुसार फल भी मिलता है। अस्थमा, सूखी खांसी जैसे रोग से इस नक्षत्र के जातक कभी-कभी तनाव रहते हैं।
पुनर्वसु का अर्थ पुन: शुभ यानि हमारे साथ दुबारा भी शुभ होगा। ब्रामण्ड में पुनर्वसु सप्तम नक्षत्र है। इस नक्षत्र का स्वामीपति गुरु है और राशि स्वामीपति बुध है। अदिति पुनर्वसु नक्षत्र की इष्टदेवी है।
पुनर्वसु नक्षत्र : व्यक्तित्व 0
डिग्री से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया जाता है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत नक्षत्र है।
आपको ज्ञात हो पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हुवे जातक कैसे होते हैं?
पुनर्वसु का अर्थ पुन: शुभ यानि दुबारा हमारे साथ शुभ होगा। आसमान में पुनर्वसु 7वां नक्षत्र है। इस नक्षत्र का स्वामीपति गुरु है और राशि स्वामीपति बुध है। अदिति पुनर्वसु नक्षत्र की इष्टदेवी है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक धार्मिक-आध्यात्मिक होते हैं, लेकिन कभी कभी ईन जातकों पर कट्टरपंथ हावी हो जाता है।
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातकों का भविष्यफल…
पुनर्वसु नक्षत्र : मिथुन राशि में इसके चारों भाग आते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र के पहले तीन भागों में जन्म होने पर जन्म राशिपति मिथुन, राशि स्वामीपति बुध तथा चौथे भाग में जन्म होने पर जन्म राशिपति कर्क तथा राशि स्वामीपति चन्द्रमा, वर्ण शूद्र, वश्य पहले तीन भागों में नर व अंतिम भाग में जलचर, योनि मार्जार, महावैर योनि मूषक, गण देव, नाड़ी आदि है।
*रंग : स्लेटी
*भाग्यशाली अक्षर : क, ह।
*वृक्ष : बांस
*देव : अदिति, बृहस्पति
*नक्षत्र स्वामी : गुरु
*राशि स्वामी : बुध और चंद्रमा
*शारीरिक गठन : लंबे पैर, घुंघराले बाल, लंबी नाक और सुंदर चेहरा लिए व्यक्ति। अच्छी शक्ति एवं सौष्ठव से युक्त।
*भौतिक सुख : भवन और वाहन का सुख, लेकिन स्त्री सुख की गारंटी नहीं।
पुष्य नक्षत्र : देवताओ के गुरु बृहस्पति को पुष्य नक्षत्र का अधिष्ठाता देव माना गया है। पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक की जन्म राशि कर्क तथा राशि स्वामीपति चन्द्रमा, वर्ण ब्राह्मण, वश्य जलचर, योनि मेढ़ा, महावैर योनि वानर, गण देव तथा नाड़ी मध्य है। व्यक्ति पर जिंदगीभर शनि, चन्द्र और गुरु का प्रभाव बना रहता है।
पुष्य नक्षत्र क्यों है सभी नक्षत्रों से भिन्न? जानिए महि-मा और सरल उपाय
पुष्य नक्षत्र (pushya nakshatra) को सभी नक्षत्रों का राजन कहा जाता है। यह 27 नक्षत्रों (27 nakshatra) में 8वें क्रम पर आता है। पुष्य नक्षत्र के देव बृहस्पति और स्वामीपति शनि हैं। पुष्य नक्षत्र के चोटी पर बहुत से सूक्ष्म सितारे हैं जो कांति घेरे के अत्यधिक नजदीक हैं। पुष्य नक्षत्र के विशेष रूप से तीन सितारे हैं, जो एक बाण (तीर) की आकृति के समान आसमान में दिखाई देते हैं। इनके तीर का सिरा नोक कई बारीक सितारो के ग्रुप के गुच्छ या पुंज के रूप में दिखाई प्रतीत होती है।
importance पुष्य नक्षत्र की महिमा: पुष्य नक्षत्र का अति शुभ योग हर माह में बनता है। पुष्य नक्षत्र विशेष सूत्र होता है़ चुंकि इस नक्षत्र में खरीदी की गई या धारण की गई कोई भी वस्तु दीर्घ समय तक सदपयोगी रहती है तथा अति शुभ फल प्रदान करती रहती है। पुष्य नक्षत्र पर गुरू (ब्रहस्पति), शनि और चंद्रमां का प्रभाव रहता है इस लिए सोना, चांदी, लोहा, बही खाता, परिधान(ड्रेस), सदुपयोगी वस्तुएं खरीदना बेचना और बड़े निवेश पूंजी सेविंग करना पुष्य नक्षत्र में अति शुभ माने जाते हैं। इस नक्षत्र के देव बृहस्पति(गुरू) हैं ईसका कारक स्वर्ण है। स्वामीपति शनि है निष्कर्ष जातक पर लोहा और चंद्र का प्रभाव रहता है इसलिए चांदी खरीदना शुभ हैं। सोना, लोहा या वाहन आदि और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सक-ती है।
वर्ष के सारे पुष्य नक्षत्रों में कार्तिक पुष्य नक्षत्र (Kartik pushya nakshatra) का विशेष महात्म है, क्योंकि इसका संबंध कार्तिक माह से है इसके प्रधान देव भगवान लक्ष्मी नारायण से है। इसलिए दिवाली से पहले आने वाला पुष्य नक्षत्र सबसे विशेष और अत्यंत लाभ-कारी माना जाता है। भारत की संस्कृति पूरी तरह से प्रकृति से मिलकर दिनभर की प्रक्रिया करने की सलाह देती है। पुष्य नक्षत्र को ऋग्वेद में वृद्धिकर्ता, मंगलकर्ता, एवं आनंदकर्ता कहा गया है।
पुष्य नक्षत्र का संजोग जिस भी दिन या वार के साथ हो रहा होता है उसे उसी वार से कहा पुकारा जाता है। चुंकि यह नक्षत्र रविवार, बुधवार या गुरुवार को आए तो , इसे अति लाभदायक शुभ माना जाता है। इस नक्षत्र के गुरु-पुष्य, शनि-पुष्य और रवि-पुष्य योग सबसे शुभकारी माने जाते हैं। चंद्रमां वर्ष के अनुसार माह में एक दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र के साथ संयोग करता है। अत: इसी मिलन को अती शुभ कहा गया है। पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक अति-विशिष्ट, सर्व-गुण संपन्न और भाग्यशाली होते हैं।
पुष्य नक्षत्र के उपाय-:
- इस दिन सूर्य ऊदय और सूर्य अस्त के समय माता महालक्ष्मी के सामने घी से दीपक जलाने से महालक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है।
- पुष्य नक्षत्र के दिन गुरू के प्रति व्रत या उपवास रखकर पूजन करने से जिंदगी के हर एक कोने में विजयश्री प्राप्त होती है।
- पुष्य नक्षत्र के दिन नए बही खाते या लिखने का सामान को शुभ मुहूर्त में खरीद कर लाना और उसे अपने व्यापार-स्थल पर संजोना चाहिए।
- इस दिन स्वर्ण, चांदी, हीरे मोती रत्न या गहने आदि बेसकीमती वस्तुएं खरीदना घर लाना बहुत शुभकारी और लाभकारी होता हैं।
- पुष्य नक्षत्र के दिवस पर शुद्ध, पावन और अक्षय धातु के रूप में पहचाना जाने वाला स्वर्ण ‘ खरीदा जाने की परंपरा हैं, चुंकि इस की खरीदारी अती शुभ मानी जाती है, किंतु जातक स्वर्ण नहीं ले पा सकते तो पीतल या चांदी जरूर ही खरीदनी चाहिए।
- ग्रहण या कालरात्री विशेष योग में जप तप उपवास दान फल जो मिलता है। उसे अकेला रवि गुरू बुध में आया पुष्य नक्षत्र देने में समर्थ हैं।
अश्लेषा नक्षत्र :- इसी नक्षत्र का स्वामीपति बुध है। अश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने पर जन्म की राशि कर्क तथा राशि स्वामीपति चन्द्र, वर्ण ब्रा-ह्मण, वश्य जल-चर, योनि-मार्जार, महावैर-यानी मूषक, गण-राक्षस तथा नाड़ी-अन्त्य है। अश्वलेषा नक्षत्र में पैदा होने वालों पर जिंदगीभर बुध व चन्द्रमां ग्रह का प्रभाव रहता है।
अश्लेषा नक्षत्र का भविष्यफलशुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नाम-करण निम्नप्रकार किया गया है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है। अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातकअश्लेषा का जो अर्थ आलिंग होता है। आसमान में अश्लेषा नक्षत्र का स्थान नौवां है। यह कर्क राशि के अंतर्-गत आता है। इसी नक्षत्र का स्वामीपति बुध है। सूर्य के पास होने से इसे प्रातः काल में देखा जा सकता है।
मघा नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मघा नक्षत्र के चारो चरण सिंह राशि स्वामी सूर्य में स्थिती होती हैं, इसके कारण मघा नक्षत्र पर सिंह राशि तथा इसके स्वामीपति ग्रह सूर्य द्वारा प्रभावित भी होता है। मघा नक्षत्र के जातक पर जीवन-भर केतु और सूर्य द्वारा प्रभावित बना रहता है। *भौतिक सुख : मकान भूमि, भवन, माता का सुख उत्तम मिलता है।
पूर्वा फाल्गुनी :- नक्षत्र में जन्मे व्यक्ती शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नाम-करण निम्नप्रकार है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।आप जानते हैं पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए व्यक्ती कैसे होगै?’पूर्वा फाल्गुनी’ का शब्द का अर्थ है- ‘पहले ही आ जाने वाला लाल रंग’। आसमान में पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र सूची में 11वां नक्षत्र माना गया है। पूर्वाफाल्गुनी का स्वमीपति सूर्य है, सूर्य की राशि सिंह है।
उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र : उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र के प्रथम भाग में उत्पन्न व्यक्ती की जन्म राशि सिंह, राशि स्वामीपति सूर्य, पीछे के तीन भागों में पैदा होने वाले की जन्म-राशि कन्या तथा राशि स्वामीपति बुध, वर्ण-वैश्य, वश्य प्रथम भाग में चतुष्पद एवं पीछे के तीन भागों में नर, योनि-गौ, महा-वैर योनि-व्याघ्र, गण-मानव तथा नाड़ी-आदि होती हैं। उतराफाल्गुनी नक्षत्र वाले व्यक्ती पर जीवनपर्यंत सूर्य और बुध ग्रह द्वारा प्रभावित रहता है।
प्रतीक :- शयन बिस्तर का पैर का हिस्सा या बेड का झूला।
रंग : नीला सा
अक्षर : ट – प
वृक्ष : रु-द्राक्ष
राशि स्वामीपति : सूर्य, बुध
नक्षत्र स्वामीपति : सूर्य
देवता स्वामी : आर्य-मन
शारीर का गठन : समान्य
भौतिक-सुख : औलाद का सुख, कृषि-भूमि एवम उच्च कार्य दायित्व ।
साकार- अत्मक पक्ष : उतरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति दान करने वाले और दयालु प्रवृत्ति के होते हैं। जातक में धैर्य, जिंदादिली, कीर्ति, साहस, अपने विषय के विद्वान, च-तुर, व्यापार करने वाले, दिमाग से तुरंत सकारात्मक निर्णय लेने वाले, पूर्व होने वाली घटना का आभास की क्षमता रखने वाले, अध्ययन प्रिय, गणित, साहित्य और भाषा अनादि में विशेषकर प्रवत होते है। व्यक्ती मेहनत से अपार धन अर्जित करने में कामयाब होता है और सामाज में प्रसिद्ध बहुत मिलती है। व्यक्ती की शादी तुला राशि या तुला लग्न वाली कन्या से अति शुभकारी मानी जाती है।
नकारा-आत्मक पक्ष : अगर सूर्य ग्रह और बुध ग्रह की स्थिति जन्म-पत्रिका में ठीक नही है तो जातक नीति के विरुद्ध आचरण करने वाला होता है।
हस्त नक्षत्र :- हस्त नक्षत्र में जन्म लेने जीवात्माओ का आने वाला समय और लक्षण प्रवृत्ति समयनुसार चन्द्रमा ग्रह द्वारा प्रभावित होता है।
शुरू से लेकर 360 डिग्री तक, आसमान में सभी नक्षत्रों का नाम-करण निम्न-प्रकार है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।
हस्त नक्षत्र में जन्मे जीवात्माओं का भविष्य-फल ।हस्त का शाब्दिक अर्थ है हाथ। नक्षत्र संख्या में हस्त नक्षत्र 13वे स्थान पर आता है। यह आसमान में हस्त के हथेली के आकृति की तरह है। हस्त नक्षत्र का स्वामीपति चन्द्रमा है और राशि कन्या है। कन्या राशि स्वामीपति बुध है। हस्त नक्षत्र में सूर्य का साधना व्रत और पूजन किया जाना लाभकारी होता है।
हस्त नक्षत्र : हस्त नक्षत्र का स्वामीपति चन्द्र ग्रह है। हस्त नक्षत्र में पैदा व्यक्ती की जन्म लेने वाले की राशि कन्या तथा राशि का स्वामीपति बुध ग्रह,
वर्ण-वैश्य, वश्य-नर, योनि-महिश, महावैर=योनि-अश्व, गण-देव और नाड़ी-आदि हैं। हस्त नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ती में चन्द्रमां के गुण विद्यमान होंगे दूसरी ओर बुध ग्रह का भी प्रभाव जीवन-पर्यन्त रहेगा।
प्र-तीक चिह्न : हस्त का हथेली रांग : डार्क हरा
अक्षरे : प’ , स’ , न’ , ड’ , पू’ , ष’ , ण’ , ढ’
पेड़ : रीठा
नक्षत्र स्वामीपति : चन्द्र ग्रह राशि स्वामीपति : बुध ग्रह
देव : चन्द्र-देवता, सा-वित्री और सूर्यदेव शरीर का गठन : सामान्य
सक्षत्मक पक्ष : हस्त नक्षत्र स्वामीपति चन्द्र ग्रह है और राशि कन्या , स्वामीपति बुध है। चन्द्रमां प्रधान नक्षत्र होने से व्यक्ती स्व-भाव से शांतिमय, भावमय प्रधान, अपने आस पास सभी की सहायता करने वाले व आकर्षन वाला प्रभाव रखने वाला और धनवान होते हैं। इस प्रकार जातक शोधकर्ता, सलाहकार या चिकित्सा के गुणों में निपुण होते हैं। हस्त नक्षत्र में पैदा हो जाने से व्यक्ती उद्यम करने वाला, कार्य के प्रति गतिशील, कौशलयुक्त , सही तरीके से कार्य करने वाला, व्यापार करने वाला, नियमो और वेदांत का ज्ञान रखने वाला, जरूरी कार्य प्राथमिकता से करने वाला, पुरषार्थ से आगे बड़ने वाला होता है।
विरोधात्मक पक्ष : चन्द्रमां का बुध ग्रह दुश्मन है। अगर चन्द्र तथा बुध ग्रह की जन्म पत्रिका में स्थान खराब है तो व्यक्ती रोज के कार्य में उलझा हुआ रहता तथा वह मार्ग दर्शन देने के बजाय , वो जातक अनुसरण करना पसंद करता है। इन जातकों में चोरी करने के भाव भी उत्पन्न होने लगते है। इसी भाव रखने से अपने जीवन में दु:खो को जन्म देते है। अपने आस पास के साथियों का उपहास करना, क्रूर होना या बेरहम होने के गुण होंना। असत्य वचन की आदतों से अपनी परिस्थिती साथ वालो के सामने गौण कर लेते है। मदिरा की आदत होती है। अगर ऐसे लक्षण है तो जातक बुरे दिन देखने मिलेंगे।
अभिमान से भरे होते हैं हस्त नक्षत्र में पैदा होने वाले जातक
हस्त नक्षत्र : -ज्योतिष विद्या के अनुसार में समस्त सौर-मंडल को 27 भाग में विभाजन कर हर एक भाग का नामित प्रति एक नक्षत्र रखा। सूक्ष्म तरिके से समझ आ जाये इस के लिए हर एक नक्षत्र के चार चरण किए जाते हैं जो भाग कहे जाते हैं। अभिजित 28वां नक्षत्र होता है, तथा इसी का स्वामीपति ब्रह्माजी को कहा जाता है। आप जानते है हस्त नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ती किस प्रकार के होते हैं?हस्त नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ती दान देने वाले, उदार प्रवृत्ति के, यश रखने वाले, धर्म के कार्य मे रत, अपने आस पास सभी साथियों पर उपकार करने वाले, धनवान और पंडितो तथा देव शक्तियों का स्वामी-भक्त होता है।
बुरी सिथ्ती से ऐसा जातक झूठ बोलने वाला, हटी, मित्रहीन और चोरी करने वाला होता है।हस्त नक्षत्र में पैदा होने से व्यक्ती उद्यम करने वाला, कार्यकुशल, सही कार्य कराने वाला, व्यापार करने वाला, सिद्धहस्त और वेदांत का जानने वाला, रोजमर्रा के कृत में निपुण तथा पुरषार्थ से प्रगति करने वाला होता है।इस प्रकार का व्यक्ती अकडु प्रवृत्ति का, झूठ बोलने वाला, घमण्ड करने वाला, मातृ -पितृ की पीढ़ा से दुःखी भी रहता है।हस्त नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ती की जन्म राशि कन्या है,
राशि स्वामीपति बुध,
वर्ण-वैश्य,
वश्य-नर,
योनि-महिश,
महावैर=योनि-अश्व,
गण- देव
और नाड़ी आदि है।
चित्रा नक्षत्र :- चित्रा नक्षत्र में पैदा हुए पुण्यात्माओं का आने वाला कल सौर मंडल में शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नाम-करण निम्न प्रकार है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।
आप जानते हैं चित्रा नक्षत्र में पैदा हुए व्यक्तीयो का आने वाला काल ।चित्रा का शाब्दिक अर्थ दैदीप्यमान है। सौर मंडल में नक्षत्रो के क्रम में चित्रा नक्षत्र 14वां नक्षत्र है। चित्रा नक्षत्र में इन्द्रदेव का व्रत और पूजन का शास्त्र विधान है।चित्रा नक्षत्र :- चित्रा नक्षत्र के प्रथम दो भागों में पैदा हुवे पुण्यात्माओं की जन्म राशि कन्या, राशि स्वामीपति बुध, आखिर के दो भागों में पैदा होने पर जन्म राशि तुला और
राशि स्वामीपति शुक्र,
वर्ण-वैश्य,
वश्य-नर,
योनि-व्याघ्र
और
नाड़ी-मध्य है। अगर पहले दो भागों में जातक का जन्म हुआ है तो जातक पर जीवनपर्यंत मंगल और बुध ग्रह द्वारा रहता हैं। अगर आखिर भागों में जन्म हुआ है तो
प्रती-क चिन : समुद्री सीप क
मोतीरंग : निम्न स्तर
राशि-स्वामीपति : बुध और
शुक्रदेव : विश्व-कर्मा जी महाराज (त्वष्टा)शारीर का गठन : चित्रा नक्षत्र
स्वाति नक्षत्र :- स्वाति नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माओं का आने वाला काल
सौर मंडल में शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नामित निम्न प्रकार किया है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।
आगे जानेंगे हैं स्वाति नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माओं का आने वाला काल ।
स्वाति नक्षत्र, सौर मंडल में स्थापित सभी नक्षत्रों में 15वां है। स्वाति नक्षत्र राहु ग्रह का दूसरे स्थान का नक्षत्र है। राहु मतलब छाया। राहु को किसी ग्रह की संज्ञा नहीं है राहु का सौर मंडल में स्थान है।
राहु पृथ्वी का उतरी ध्रुव है। समुंद्र मंथन में अमृत कलश का चुपके से अमृत पीने के कारण इनको सौर मंडल में स्थान मिला है। परन्तु छाया धुआं है। साफ आकाश में उड़ते काले बादल है। जो आसमान को सपष्ट देखने नही देते हैं। जब हो स्वाती दूसरे तीसरे चरण का जातक कुंडली के साकार ग्रहों युक्त तो जातक कूल को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाला होता है। जातक के कार्य जीवन की शुरुवात भले ही कठिनाइयों से हो परन्तु 31वे वर्ष के बाद काम होते चले जाते है। जातक कूल दीपक होता है।
स्वाति नक्षत्र : स्वाति का शाब्दिक अर्थ भीड़ में सबसे आगे बड़ी भेड़ तथा अन्य अर्थ पुरोहित या कबीले का प्रमुख। शास्त्रों के अनुसार ज्योतिष में स्वाति नक्षत्र के सारे चारो भाग तुला राशि में आते हैं। इसी कारण इस नक्षत्र में तुला राशि और इसी राशि के स्वामीपति शुक्र ग्रह का भी असर रहता है।
प्र-तीक चिनं : नया अंकुर या नई कोंपल
वर्ण रांग : काला
अ-क्षर : र’ , ल’
पेड़ : अर्जुन का
नक्षत्र स्वामीपति : राहुल
राशि स्वामीपति : शुक्र ग्रह
देव : पवन और वीणा वादनी
शारीर का गठन : स्वाति नक्षत्र में पैदा हुए जातक का शरीर बड़ा वजनी होता है। मुख गौर वर्ण और सौंदर्यवान होता है। उदार की व्याधि से पीड़ित रह सकते है।
भौतिकवादी सुख : भाग्यवान होने से जातक को प्रॉपर्टी और मकान घर का सुख, स्त्री आज्ञाकारी पूर्ण सुख।
साक्षात्मक पक्ष : स्वाति नक्षत्र में पैदा होने से व्यक्ती होशियार, अपने आस पास प्रसीद, सहोदर, व्यवाहार कुशल, व्यापार करने वाला, दयालु, मीठा बोलने वाला और देव व भगवान और विद्वान, ब्राह्मण का आस्तिक आचरण वाला होता है। इन के अतरिक्त अति संवेदनशील, अंतर्मुखी और शास्त्र सम्मत और होशारी उम्दा होती हैं।
विरोधात्मक पक्ष : अपने हित हक के लिए ये स्वभाव से सहन नहीं करने वाले होते हैं। हठी तथा घमंड करने वाले होते हैं। इसी प्रवृत्ति के कारण अपने आस पास साथियों की तरक्की से दुःखी रहेंगे। अगर इन व्यक्तियों में सेक्स के प्रति अधिक उत्सुक रहै तो कुंडली में योग होते हुए भी भाग्य साथ नहीं देगा। जातक के कुंडली में शुक्र ग्रह के खराब होने की परीस्थिति में भौतिकवादी और स्व स्त्री सुख नही रहता। स्व स्त्री रोगनी रोमांस विमुख हो जाती हैं। जातक पर-स्त्री अपने आस पास साथियों से मित्रता , सोमरस और नशा करने वाली सामग्री का भोगी होने लगता है।
स्वाती नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माएं उधोगपति
स्वाति नक्षत्र सौर मंडल में 15वाँ नक्षत्र है। इनका स्वामीपति राहु है। लोकोक्ति है कि जब भी स्वाति नक्षत्र में बारिश की बूँद सीप में आती है तो ही मोती बनाती है। वास्तव मे यह प्रक्रिया मोती नहीं बनाती कपितु इस प्रकार व्यक्ति मोती के समतुल्य चमकता है।
राहु को ग्रह नहीं समझा जाए। चुंकि इसका सौर मंडल में अमृत-पायी होने से छाया ग्रह की उपाधि है। इसको धरती का उत्तरी ध्रुव कहते है। स्वाति नक्षत्र की जो राशि है, उत्तरी ध्रुव पर होने के फलस्वरूप। ऐसे व्यक्ति मेहनती होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने प्रयासों से अपने जीवन की नीव रखते हैं तथा कामयाबी हासिल करते हैं। यह नक्षत्र की राशि तुला में आते है। रू’ रे’ रो’ रा’ नाम से इनको पहचाना जाता है। स्वाती नक्षत्र स्वामी की महादशा 18 वर्ष की चंद्रमां के अंशों के अनुरुप होती है।
राहु मिथुन राशि और वृषभ राशि में उच्च का माना जाता है। इसी प्रकार धनु राशि व वृश्चिक राशि में नीच का माना जाता है। कन्या राशि में मित्र राशि का व मीन में शत्रु राशि का माना जाता है। राहु उच्च राशी होकर दशम भाव में होने से और शुक्र ग्रह नौवे स्थान में तथा सातवें स्थान में अथवा द्वितीय भाव में या पंचम भाव में हो तो ऐसा जातक जीवन सफल राजनीती करने वाला, व भाग्यवान जीवन का आनंद लेने वाला होगा।
स्वाति नक्षत्र सौर मंडल मंडल में 15वाँ नक्षत्र होने से इसका स्वामीपति राहु मतलब अंधेरा है। लोकोक्ति भी है कि जिस समय स्वाति नक्षत्र में बारिश की बूँद सीप पर आती है तो मोती निर्माण होता है। वास्तव में ऐसा व्यक्ति मोती नहीं है, वास्तव मे ऐसा व्यक्ति मोती के समान चमकने वाला होता है।
शुक्र और राहु की युक्ति वृषभ में नवम भाव के या सांतवे स्थान में या दूसरे भाव में हो और शुक्र ग्रह नौवे स्थान में या सांतवे स्थान में दूसरे भाव से अथवा पांचवे भाव में हो तो इस प्रकार का व्यक्ती कामयाब राजनीतिवान और भाग्यवान जिंदगी व्यतीत करने वाला होगा। शुक्र राहु साथ मे वृषभ राशि का नौवे स्थान में ही हो तो इस प्रकार का व्यक्ती धनी होगा, परन्तु वह कुछ धूर्त कर्म भी करने वाला होगा।
राहु वृषभ राशि का दसवें घर में हो तो व शुक्र तीसरे घर में हो इस प्रकार का व्यक्ती राजनीतिवान व स्वय के पुरषाथ से कामयाब होने वाला होगा। राहु का नक्षत्र स्वामीपति बारवें स्थान में उच्च का हो, राशि स्वामीपति तुला व ग्यारवे घर में वृषभ का या उच्च राशी का होने से नौवे घर में हो तो इस प्रकार का व्यक्ती कामयाब व्यापार करने वाला होकर देश-विदेश कामयाबी हासिल करता है।
वृषभ राशि का राहु लग्न में शुक्र की युक्ति के साथ हो तो इस प्रकार का व्यक्ती राजनीतिवान और स्वय पुरषाथ से कामयाबी हासिल करने वाला होगा। वृषभ राशि का राहु लग्न में शुक्र ग्रह के साथ हो तो इस प्रकार का व्यक्ती नशा या नशे के कर्म में लिप्त होगा। इस ही लग्न में राहु दूसरे स्थान में हो व शुक्र ग्यारवे में हो तो इस प्रकार व्यक्ति धनी होता है। अपने पुरषार्थ से धन का लाभ कमाने वाला उम्दा वक्ता होगा। राहु उच्च का लग्न में हो और राशि स्वामीपति तुला का हो तो इस प्रकार का व्यक्ति अच्छा शिक्षित होकर कामयाब राजनीतिवान होता है। भाग्य का स्वामी व लग्न का स्वामी शुक्र शनि की युक्ति के साथ होकर राहु है तो इस प्रकार व्यक्ति अच्छा व्यवसाय भिन्न प्रकार उद्योगों का कर्ता भाग्यवान होता है।
व्यक्ति की कुंडली में लग्न तुला का शुक्र है, नक्षत्र स्वामीपति राहु नौवे स्थान में है तो इस प्रकार का व्यक्ति गोमेद या फिरोजा रत्न के साथ हीरा रत्न प्लेटिनम में पहनता है तो व्यक्ति स्वयं की चतुरता से अच्छा ज्ञान हासिल करने वाला बाटने वाला भाग्यशाली होता है। राहु बारबे में कन्या राशि का है तो राशि स्वामीपति शुक्र चौथे स्थान में है या पांचवे, दशवे में है तो इस प्रकार का व्यक्ति स्वयं काबलियत के दम पर अच्छा प्रतिफल पाने वाला होता है, शिक्षा में उम्दा सफल होने वाला होता है। राहु सातवें में उच्च राशी का हो वह राशि का स्वामी भी उच्च का है तो ऐसा व्यक्ति स्वयं की धर्मसंगनी के साथ द्वारा अति-उत्तम कामयाबी प्राप्त करता है। कामयाब राजनीति और अपनी धर्मसंगनी की कूटनीति से प्राप्त होती है।
राहु शुक्र की युक्ति एक साथ सातवे स्थान में है तो ऐसा व्यक्ति के एक से बढ़कर भी संबंध हो जाते हैं, राहु चौथे में है और शुक्र उच्च का होकर लग्न में है तो व्यक्ति अपने आस पास की राजनीति में कामयाब होता है। अपने आस पास जन के कार्यों सम्बन्ध से भी लाभ प्राप्त करता है। वृषभ राशि का शुक्र चौथे में स्वाती नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माएं उधोगपति
स्वाति नक्षत्र सौर मंडल में 15वाँ नक्षत्र है। इनका स्वामीपति राहु है। लोकोक्ति है कि जब भी स्वाति नक्षत्र में बारिश की बूँद सीप में आती है तो ही मोती बनाती है। वास्तव मे यह प्रक्रिया मोती नहीं बनाती कपितु इस प्रकार व्यक्ति मोती के समतुल्य चमकता है।
राहु को ग्रह नहीं समझा जाए। चुंकि इसका सौर मंडल में अमृत-पायी होने से छाया ग्रह की उपाधि है। इसको धरती का उत्तरी ध्रुव कहते है। स्वाति नक्षत्र की जो राशि है, उत्तरी ध्रुव पर होने के फलस्वरूप। ऐसे व्यक्ति मेहनती होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने प्रयासों से अपने जीवन की नीव रखते हैं तथा कामयाबी हासिल करते हैं। यह नक्षत्र की राशि तुला में आते है। रू’ रे’ रो’ रा’ नाम से इनको पहचाना जाता है। स्वाती नक्षत्र स्वामी की महादशा 18 वर्ष की चंद्रमां के अंशों के अनुरुप होती है।
राहु मिथुन राशि और वृषभ राशि में उच्च का माना जाता है। इसी प्रकार धनु राशि व वृश्चिक राशि में नीच का माना जाता है। कन्या राशि में मित्र राशि का व मीन में शत्रु राशि का माना जाता है। राहु उच्च राशी होकर दशम भाव में होने से और शुक्र ग्रह नौवे स्थान में तथा सातवें स्थान में अथवा द्वितीय भाव में या पंचम भाव में हो तो ऐसा जातक जीवन सफल राजनीती करने वाला, व भाग्यवान जीवन का आनंद लेने वाला होगा।
स्वाति नक्षत्र सौर मंडल मंडल में 15वाँ नक्षत्र होने से इसका स्वामीपति राहु मतलब अंधेरा है। लोकोक्ति भी है कि जिस समय स्वाति नक्षत्र में बारिश की बूँद सीप पर आती है तो मोती निर्माण होता है। वास्तव में ऐसा व्यक्ति मोती नहीं है, वास्तव मे ऐसा व्यक्ति मोती के समान चमकने वाला होता है।
शुक्र और राहु की युक्ति वृषभ में नवम भाव के या सांतवे स्थान में या दूसरे भाव में हो और शुक्र ग्रह नौवे स्थान में या सांतवे स्थान में दूसरे भाव से अथवा पांचवे भाव में हो तो इस प्रकार का व्यक्ती कामयाब राजनीतिवान और भाग्यवान जिंदगी व्यतीत करने वाला होगा। शुक्र राहु साथ मे वृषभ राशि का नौवे स्थान में ही हो तो इस प्रकार का व्यक्ती धनी होगा, परन्तु वह कुछ धूर्त कर्म भी करने वाला होगा।
राहु वृषभ राशि का दसवें घर में हो तो व शुक्र तीसरे घर में हो इस प्रकार का व्यक्ती राजनीतिवान व स्वय के पुरषाथ से कामयाब होने वाला होगा। राहु का नक्षत्र स्वामीपति बारवें स्थान में उच्च का हो, राशि स्वामीपति तुला व ग्यारवे घर में वृषभ का या उच्च राशी का होने से नौवे घर में हो तो इस प्रकार का व्यक्ती कामयाब व्यापार करने वाला होकर देश-विदेश कामयाबी हासिल करता है।
वृषभ राशि का राहु लग्न में शुक्र की युक्ति के साथ हो तो इस प्रकार का व्यक्ती राजनीतिवान और स्वय पुरषाथ से कामयाबी हासिल करने वाला होगा। वृषभ राशि का राहु लग्न में शुक्र ग्रह के साथ हो तो इस प्रकार का व्यक्ती नशा या नशे के कर्म में लिप्त होगा। इस ही लग्न में राहु दूसरे स्थान में हो व शुक्र ग्यारवे में हो तो इस प्रकार व्यक्ति धनी होता है। अपने पुरषार्थ से धन का लाभ कमाने वाला उम्दा वक्ता होगा। राहु उच्च का लग्न में हो और राशि स्वामीपति तुला का हो तो इस प्रकार का व्यक्ति अच्छा शिक्षित होकर कामयाब राजनीतिवान होता है। भाग्य का स्वामी व लग्न का स्वामी शुक्र शनि की युक्ति के साथ होकर राहु है तो इस प्रकार व्यक्ति अच्छा व्यवसाय भिन्न प्रकार उद्योगों का कर्ता भाग्यवान होता है।
लग्न में तुला का शुक्र हो नक्षत्र स्वामीपति नवम भाव में हो तो ऐसा जातक गोमेद के साथ हीरा पहने तो अपनी चतुराई से उत्तम ज्ञानवान भाग्यशाली होगा। राहु द्वादश में कन्या का हो तो राशि स्वामी शुक्र चतुर्थ, पंचम, दशम में हो तो ऐसा जातक अपनी योग्यता के बल पर उत्तम सफलता पाने वाला, विद्या में उत्तम सफलता पाने वाला होता है। राहु सप्तम में उच्च का हो वही राशि स्वामी उच्च का हो तो ऐसा जातक अपनी पत्नी के द्वारा उत्तम सफलता पाता है। सफल राजनीति व उसकी पत्नी भी कूटनीतिज्ञ होती है।
राहु शुक्र साथ होकर सप्तम भाव में हो तो ऐसे जातक के एक से अधिक संबंध होते हैं, राहु चतुर्थ में हो व शुक्र उच्च का लग्न में हो तो स्थानीय राजनीति में सफल होता है। जनता से संबंधित कार्यों में लाभ पाता है। वृषभ का शुक्र चौथे में है राहु पांचवे में हो तो इस प्रकार का व्यक्ति उत्तम प्रकार भाग्यवान ,उपज जमीन से भवन, प्रॉपर्टी, , लोकल राजनीति से लाभ होता है। बिल्डिंग, प्रॉपर्टी, मां, से राजनीति में कामयाब होता है।
विशाखा नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माओं का भविष्यफल……..
शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नाम निम्न प्रकार है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। गुप्त 28वां नक्षत्र अभिजीत भी है। आप जानते हैं विशाखा नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माओ का भविष्यफल।
सौर मंडल में विशाखा नक्षत्र का नंबर 16वां है। ‘विशाखा’ का शाब्दिक अर्थ होता है विभाजित शाखा। विशाखा नक्षत्र वाले व्यक्ती स्वय लक्ष्य को प्राप्ती के लिए अखरी हद तक जा सकते हैं।
विशाखा नक्षत्र : विशाखा नक्षत्र के अगले 3 भाग तुला राशि में और अंत के भाग में मंगल की वृश्चिक राशि में आते हैं। विशाखा नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति पर गुरु, शुक्र और मंगल को भी जीवनपर्यंत प्रभावित करता है। विशाखा नक्षत्र के पहले 3 भाग में पैदा होने वाले व्यक्ति की जन्म-राशि तुला, राशि स्वामीपति शुक्र, वश्य नर तथा अंत भाग में पैदा होने पर जन्म-राशि वृश्चिक, राशि स्वामीपति मंगल, वर्ण ब्राह्मण वश्य कीट, योनि व्याघ्र, महावैर योनि गौ, गण राक्षस तथा नाड़ी अंत्य है।
प्र-तीक : मुख्य द्वार, तोरण आगमन द्वार
रंग : सुनहरी
अक्षर : झ
वृक्ष : विकंकत
देव: अग्नि और इंद्र
नक्षत्र स्वामीपति : बृहस्पति
राशि-स्वामीपति : शुक्र, मंगल
शारीरिक गठन : विशाखा नक्षत्र के व्यक्ती के नयन-नक्श सुंदर होते हैं। ये भरे पूरे शरीर के होते हैं।
भौतिकवादी सुख : सम्मानित पद, प्रतिष्ठा, वाहन और भवन सुख।
सकारा पक्ष : विशाखा में पैदा होने वाले जातक प्रभावयुक्त कथन कहने वाला, व्यावहार कुशल, सनातन-विज्ञान में रुचि रखने वाला, न्यायप्रिय, नीति-निपुण, नेता के गुण, सफल होने वाले और साहस के कार्यों के प्रणेता होते है।
नकार पक्ष : गुरु, शुक्र या मंगल की कुंडली में परिस्थिति ठीक नहीं है तो ऐसे जातक आवेशित स्वभाव रखकर गलत मार्ग पर चल पड़ता है। इस प्रकार जातक लालची, दयाहीन, विवादप्रिय, स्वार्थ सिद्ध करने, चालाकी से स्वामी भाग्य बिगाड़ बैठता है।
प्रस्तुति : शतायु विशाखा नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माओं का भविष्यफल……..
शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नाम निम्न प्रकार है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। गुप्त 28वां नक्षत्र अभिजीत भी है। आप जानते हैं विशाखा नक्षत्र में पैदा होने वाले पुण्यात्माओ का भविष्यफल।
सौर मंडल में विशाखा नक्षत्र का नंबर 16वां है। ‘विशाखा’ का शाब्दिक अर्थ होता है विभाजित शाखा। विशाखा नक्षत्र वाले व्यक्ती स्वय लक्ष्य को प्राप्ती के लिए अखरी हद तक जा सक
विशाखा नक्षत्र : विशाखा नक्षत्र के अगले 3 भाग तुला राशि में और अंत के भाग में मंगल की वृश्चिक राशि में आते हैं। विशाखा नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति पर गुरु, शुक्र और मंगल को भी जीवनपर्यंत प्रभावित करता है। विशाखा नक्षत्र के पहले 3 भाग में पैदा होने वाले व्यक्ति की जन्म-राशि तुला, राशि स्वामीपति शुक्र, वश्य नर तथा अंत भाग में पैदा होने पर जन्म-राशि वृश्चिक, राशि का स्वामीपति मंगल, वर्ण ब्राह्मण वश्य कीट, योनि व्याघ्र, महावैर योनि गौ, गण राक्षस तथा नाड़ी अंत्य है।
प्र-तीक : मुख्य द्वार, तोरण आगमन द्वार
रंग : सुनहरी
अक्षर : झ
वृक्ष : विकंकत
देव: अग्नि और इंद्र
नक्षत्र स्वामीपति : बृहस्पति
राशि-स्वामीपति : शुक्र, मंगल
शारीरिक गठन : विशाखा नक्षत्र के व्यक्ती के नयन-नक्श सुंदर होते हैं। ये भरे पूरे शरीर के होते हैं।
भौतिकवादी सुख : सम्मानित पद, प्रतिष्ठा, वाहन और भवन सुख।
साकारात्मक पक्ष : विशाखा में जन्मा व्यक्ति प्रभावशाली वचन बोलने वाला, व्यावहारिक, ज्ञान-विज्ञान में अभिरुचि रखने वाला, न्याय निपुण, नेतृत्व करने में सफल और साहसिक कार्यों का प्रणेता होता है।
विरोधात्मक पक्ष : गुरु, शुक्र या मंगल की कुंडली में स्थिति खराब है तो ऐसे व्यक्ति उग्र स्वभाव रखते हुए गलत रास्ते में चल पड़ता है। ऐसा जातक लोभी, निष्ठुर, कलहप्रिय, स्वार्थी, चालाक होकर अपना भाग्य बिगाड़ बैठता है।
अनुराधा :- नक्षत्र में पैदा होने वाले दिव्यात्माओ का फल
शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नाम निम्न प्रकार सूचि है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।
अनुराधा नक्षत्र 27 नक्षत्रों की सूचि में 17वां नक्षत्र संख्या है। इसी नक्षत्र में जिन व्यक्तियों का जन्म होता है उन व्यक्तियों के देव मित्र देव हैं जो बारह सुर्यो में से एक मानते हैं। इस नक्षत्र का स्वामीपति शनि और राशिपति स्वामी मंगल होने से नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्तियों पर दोनों ही ग्रहों से प्रभावित रहते है।
पुरुषों का व्यक्तित्व
अनुराधा नक्षत्र में पैदा होने वाले पुरुषो में आकर्षक होता हैं, चूकि हरैक इन् जातकों को पसंद नहीं करते है। इन जातकों की चमकीली आंखें सभी को अपनी ओर आकर्षन पैदा करती हैं। पुरुष स्वभाववश से आत्म-विश्वासयुक्त और मेहनत करने वाले होते हैं। इनके पास विपरीत परिस्थिति को सहजता से और व्यवस्था स्थिती तकनिक से संभाल लेने का कौशल विषेश है। इसके बाद भी ये जातक भविष्य में होने वाली घटनाओं से प्रभावित रहते हैं। दोनो तरफ़ के सोच न केवल ईन्हें तनाव में डाल सकते हैं ऐसे जातक जीवन का पूर्ण आनंद लेने और अपने विपरीत लिंगी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से भी रोक सकते हैं। इस प्रकार के जातकको थोड़े कंजूस होते हैं, परन्तु ये गुण इन जात लिए वरदान साबित होते हैं।
अनुराधा का भावअर्थ सफलता भी होता है l नक्षत्र तारामंडल का 17वां नक्षत्र है अनुराधा नक्षत्र। आकाशमण्डल में अनुराधा नक्षत्र का विस्तार 213 अंश 20 कला से 226 अंश 40 कला विस्थापित है। आकाशगंगा में अनुराधा 3 से 4 तारामण्डल का समूह है। ज्यादातर विद्वान इसको 4 तारों का समूह की मान्यता देते हैं। अनुराधा में उत्तरयान में वस्त्रों को दान करने का विधान है।
अनुराधा नक्षत्र : अनुराधा नक्षत्र का स्वामीपति शनि और राशि का स्वामीपति मंगल होने के कारण इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति पर दोनों ही ग्रहों द्वारा प्रभावित रहते है। अनुराधा नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति की जन्म राशि वृश्चिक, राशि स्वामीपति मंगल, वर्ण- ब्राह्मण, वश्य-कीट, योनि-मृग, महावैरयोनि-श्वान, गण-देव तथा नाड़ी-मध्य है।
प्रतीक चिन : तोरण द्वार
पेड़ : मौलश्री
कलर : लाल-बादामी
अक्षर : “न”
नक्षत्र स्वामीपति : शनि
राशि स्वामीपति : मंगल
देव : भैरव
शारीर का गठन : सामान्य
भौतिकवादी सुख : मकान और वाहन
सकार पक्ष : अगर व्यक्ति की कुंडली में मंगल की स्थिति अच्छी है तो इस प्रकार का व्यक्ति दर्शन, वेद, पुराण एवं विज्ञान तथा तकनीकी कार्य करने में अभिरुचि रखने वाला, कला में निपुण, अध्ययनशील, परिश्रमी, उत्साहशील, प्रयोगवादी, नया आविष्कारक, नए तरह से शोधकर्ता होता है जिसके चलते उसकी दिन प्रति दिन उन्नति होती जाती है। विदेश गमन और वहीं आवास के योग बनते हैं।
विरोध पक्ष : यदि मंगल और शनि दोनों या दोनों में से एक भी ग्रह कुंडली में खराब स्थिति में है तो व्यक्ति को कई-तरह की समस्याओ से जूझना पड़ता है। ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति गुप्त गतिविधि में विशेष पारंगत, स्वार्थ सिद्ध करने वाला, हिंसक प्रवृत्ति, कठोर, क्रूर स्वभाव का आचरण बन जाता है।
‘धनिष्ठा‘ – का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे अधिक धनी‘। सनातन ज्योतिष की गणना के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानने वाले 27 नक्षत्रों में से धनिष्ठा नक्षत्र को 23वां नक्षत्र माना गया है। इसका स्वामीपति मंगल और देव वसु हैं।
शुरू से लेकर 360 डिग्री तक सभी नक्षत्रों का नाम-करण निम्नप्रकार किया जाता है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। 28वां नक्षत्र अभिजीत है।
धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा होने वाले जातक का भविष्य।’धनिष्ठा’ का शाब्दिक अर्थ होता है ‘सबसे अधिक धनी’। सनातन ज्योतिष की गणना के लिए सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले 27 नक्षत्रों में धनिष्ठा को 23वां नक्षत्र माना गया है। इस नक्षत्र का स्वामीपति मंगल और देव वसु हैं।
धनिष्ठा नक्षत्र : इस नक्षत्र का स्वामीपति मंगल है, साथ हीं राशि स्वामीपति शनि है। धनिष्ठा नक्षत्र के अग्र दो भागों में पैदा होने वाले जातक की राशि मकर, राशि स्वामीपति शनि, अंत के दो भागों में पैदा होने पर राशि कुंभ तथा राशि स्वामीपति शनि, वर्ण-शूद्र, वश्य-जलचर और नर-यानी सिंह, महा-वैर योनि-गज, गण-राक्षस तथा ना+ड़ी मध्य है।धनिष्ठा में पैदा होने वाले व्यक्ति पर जीवनपर्यन्त मंगल और शनि द्वारा प्रभावित रहता है। यह नक्षत्र स्त्रैण है, परन्तु मंगल ग्रह की ऊष्मा ऊर्जा इस नक्षत्र में अपनेआप में चरमोत्कर्ष तक जाती है ।इसीलिए इसे उच्च का मंगल भी कहते है।प्र-तीक : ड्रम, बांसुरी, गोल ढोल या मृदंगदे-वता : वसुपेड़ : शमीरंग : हल्का ग्रेअक्षर : गू, गे, जनक्षत्र-स्वामीपति : मंगलराशि स्वामीपति : शनिशारीर का गठन : प्राय: इस नक्षत्र के व्यक्ति दुबले शरीर वाले होते हैं।सकार पक्ष : इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति बी चतुर-मुखी प्रतिभा और बुद्धि के धनवान होते हैं। ऐसे व्यक्ति कई-कई एरिया में विशेषज्ञता में निपुण होते हैं। ये साम-रिक योजना बना कर कार्यविद, खेल-कूद, स्वास्थ्य-शिक्षा,बहुत अच्छे शिक्षा-विद और बहुत अच्छे व्यवस्थापकशील होते हैं। इन व्यक्तियों में जमा करने और संसाधन को एकत्रित करने की शक्ति समाहित होती है।
विरोध पक्ष : धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति का मंगल ग्रह यदापि खराब है तो व्यक्ति अधिकबार अभिमान, अड़ि-यल तथा जिद्दी स्वभाव का हो जाता है। इस नेचर के कारण अनेक तरह की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं। मंगल का शुभ प्रभाव खत्म होता तो जाता है। सभी जीवन में घटनाएं प्रतिकूल होती है।
शतभिषा – सौर मंडल में सभी नक्षत्र मण्डल में 24वां नक्षत्र क्रम है। ‘शतभिषा‘ का अर्थ होता है ‘सौ भीष्’ मतलब ‘सौ वेधाचार्य’ अथ-वा ‘सौ प्रकार की चिकित्सा’। ‘शत’ नक्षत्र का अग्र भाग का एक नाम है जिसके शब्द का अर्थ है ‘सौ तारे’। मुख्य ज्योतिष आचार्यों ने इसकी दृष्टि भी मानी है और कुछ विद्वानों के मान के अनुसार से इसका अस्तित्व भी नही है ऐसे तो दृष्टि भी कैसी?
शतभिषा – ज्योतिशीय विधा में समस्त सौर मंडल को 27 पार्ट में बांट कर हर एक भाग का नाम एक-एक नक्षत्र पर रखा गया है। सूक्ष्म से सूक्ष्म समझने के लिए हर एक नक्षत्र के 4 भाग हैं, जो चरण नाम से कहलाते हैं। अभिजित को 28वां नक्षत्र माना जाता है और इसका स्वामीपति ब्रह्मदेव को कहा जाता है।सौर मंडल में शतभिषा नक्षत्र को 24वां नक्षत्र क्रम है। ‘शतभिषा’ का शब्द का अर्थ है ‘सौ भीष्’ मतलब ‘सौ प्रकार वेधाचार्य’ अथवा ‘सौ प्राकार की चिकित्सा’। ‘शत’ इस नक्षत्र नाम है जिसका शब्द का अर्थ है ‘सौ तारे’।
शतभिषा का स्वामीपति राहु है। इसकी महादशा में 18 वर्ष आते हैं और कुंभ राशि के अंत-र्गत आते है। शतभिषा नक्षत्र में पैदा होने वाले की राशि कुंभ तथा राशि का स्वामीपति शनि, वर्ण-शूद्र वश्य-नर, योनि-अश्व, महा-वैर योनि-महिष, गण-राक्षस तथा नाड़ी-आदि हैं। इस प्रकार के व्यक्ति पर दोनो ग्रहों राहु और शनि द्वारा प्रभावित रहता है।
सकार पक्ष : अगर राहु और शनि का कुंडली में स्थिती अच्छी है तो ऐसा व्यक्ति रहस्यमय, दार्शनिक और वैज्ञानिक विचारशील से पूर्ण होकर ऊंचे सैद्धांतिक आचरण का होता है। शतभिषा नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने से व्यक्ति में आत्मविश्वास भरपूर होता हैं। शतभिषा नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति साहसी, दाता, कठोर चित्त, चालाक, अल्पभोजी तथा कालज्ञान वाले होते है। ऐसा व्यक्ति महत्वाकांक्षी, साधारण जीवन जीने वाला सदाचारी, साधुसंतों का सम्मान करने वाला और धार्मिक होता है।
विरोध पक्ष : शतभिषा नक्षत्र का शासक ग्रह राहू माना जाता है। जब राहु बुरा होकर के मिथ्याओं, रहस्यों और गुप्त ज्ञान तथा जादुई घटनाओं की ओर झुकने वाला होता है इस कारण राहु ग्रह का प्रभाव अगर सही नहीं है तो व्यक्ति बेकार की विद्याओं के चक्कर में अपना समय खराब करता है।
ऐसे व्यक्ति व्यसनयुक्त, बिना सोचे कार्य करने वाले, घर में किसी के वश में न होने वाले, यानि बिना सहमति तथा
दुश्मनों को जीताने वाले होते है। इसके साथ ही व्यक्ति कृपण, परस्त्री मगन तथा परिवार से दूर रहने की इच्छा रखने वाला होता है। इस प्रकार के स्वभाव के कारण वह कभी अपने परिवार के सदस्यों को सुख नहीं दे पाता है।
पूर्वा भाद्रपद :- यह नक्षत्र गुरू का है।पूर्वा भाद्रपद का चतुर्थ भाग में मीन राशि होती है। व्यक्ति को इसी ही नाम अक्षर से जाना जाता है। बृहस्पति का नक्षत्र और मीन गुरु की राशि में आने से ऐसा व्यक्ति आकर्षन युक्त अपने व्यक्तित्व का धौंस, गुनीं, धर्मकर्म, सतकर्म को करने वाला, ईमानदारी युक्त, परोपकार करने वाला, न्यायप्रिय होता है। पूर्वा भाद्रपद के अंत के भाग में पैदा होने वाले व्यक्ति आकर्षक होते है।
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामिपति गुरू अंत के भाग मीन राशिस्थ में आते है। इसी नाम से ही इन्हे पहचाना जाना जाता है।बृहस्पति का नक्षत्र व बृहस्पति की राशि मीन में आने से इस प्रकार का व्यक्ति आकर्षन युक्त व्यक्तित्व प्रभुत्व का धनी, गुणों से युक्त, धर्मी, सत्त-कर्म को मानने वाला, ईमानदारी पूर्ण, परोपकार करने वाला, न्यायसंगत होता है। बृहस्पति अगर स्वराशि धनु और मीन में से हो तो इस प्रकार के व्यक्ति सदाचारी होते है।
उतराभाद्रपद :- इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति सोच-समझ कर बोलने वाला, सुख देने वाली संतान, धर्म-कर्म में पूर्ण आस्थ़ा, बोलने में श्रेष्ठ वक्ता, विशाल दिल के सम्मानजनक व्यक्ति भी होते हैं। शनि आध्यात्म में रूचि देने वाला व्यक्ति, इस में पैदा हुए व्यक्ति है जो बृहस्पति के ज्ञान से परिपूर्ण है। गुरु और शनि की युक्ति धनु या मीन राशिस्थ में है इस योग के अति शुभ फल मिलते है
उत्तरा भाद्रपद सौर-मंडल में 26वाँ नक्षत्र है। ये नक्षत्र मीन राशि में आता है। इसमैं े दू, थ, झ अक्षर संबोधन से जाना जाता है। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र स्वामीपति शनि है। यहीं राशि का स्वामीपति गुरु है।शनि गुरु आपस में शत्रुवत है। Ye hकुंडली योग परस्पर ताल-मेल व पंचधा-मेत्री सारणी में जिस व्यक्ति की कुंडली में मित्र ग्रह का सम हो तो उसके शुभ फल भी जीवन प्रकट होते हैं।इस नक्षत्र में पैदा होने वाला व्यक्ति मंथन शनि के साथ चंद्रमां आने से इस प्रकार का व्यक्ति अति आध्यात्म में रूचि परोपकार करने वाला, ज्ञानयुक्त, स्वप्र को स्वय प्रयास से सफल बनाने वाला उपदेश देने वाला भी होता है।
रेवती :- सौरमंडल का आखरी नक्षत्र है। रेवती मीन राशि के अंतर्गत आता है। इसके दे, दो, चा, ची के अक्षर नाम के आगे हो, तो वो रेवती नक्षत्र से जाना जाता है। रेवती नक्षत्र स्वामीपति बुध ग्रह है।रेवती नक्षत्र में पैदा हुआ जातक हर प्रकार के कार्य-क्षेत्र में सफल होता है।
रेवती नक्षत्र स्वामीपति बुध है। बुध ग्रह बुद्धि का कारकत्व है। इसी के अंतर्गत इसे वणिक ग्रह कहा गया है। इसका राशि स्वामीपति गुरु है। गुरु-बुध की एक साथ युति जातक की कुंडली के जिस भाव में जेसी होगी वैसा फलिभुत जीवन में होगा। बुध-गुरु जातक की कुंडली में एक भाव में आने जातक विवेकशील, व्यापारी, कामयाब वकील,भी होता है।
रेवती नक्षत्र एक बतीस सितारों का एक हिस्सा है।[1] इसे मृदु मॅत्र संज्ञक नक्षत्र भी कहते है। रेवती नक्षत्र में विद्यारंभ की शुरुआत, घर-प्रवेश, शादी, सम्मान प्राप्त होना, देव-प्रतिष्ठा, वस्त्रों का भी निर्माण आदि प्रकार कार्य पूर्ण किए जाते हैं। इस नक्षत्र में दक्षिण दिशा की यात्रा तथा अंतिम+दाह जैसे कार्य नहीं करने चाहिएं । रेवती नक्षत्र के देव पूषा हैं। रेवती मीन राशि का आखरी २७वा नक्षत्र है।।। मस्तिष्क का नक्षत्र है। इसके स्वामीपति ग्रह बुध हैं।[2] इस पर गुरू एवं बुध का एक साथ प्रभावयुक्त होता है।
जो व्यक्ति रेवती में पैदा होते हैं । वो जातक नक्षत्र स्वामीपति बुध ग्रह की महादशा में अवतरण लेते हैं। वह जातक कर्म से तेजस्वी, चेहर से सुंदर, चतुर, विद्वान होते हैं। धन से युक्त संपन्न होते हैं।नाम अक्षर “दे, दो, च, ची ” नक्षत्र चरण अनुसार।रोग रेवती नक्षत्र में पैदा होने वाले लोगों को वात-विकार, तेज बुखार, पीठ कमर दर्द आदि समस्या बनी रहती हैं।रेवती – मथुरापति श्री कृष्ण जी की भाभी थी
13 नक्षत्र के स्वामिपति ग्रह
1अश्विनी-केतु
2 भरणी-शुक्र
3 कृत्तिका-सूर्य
4 रोहिणी-चंद्रमा
5 मृगशिरा-मंगल
6 आर्द्रा-राहु
7 पुनर्वसु-गुरु
8 पुष्य-शनि
9 अश्लेषा-बुध
10 मघा-केतु
11 पूर्वा फाल्गुनी-शुक्र
12 उत्तरा फाल्गुनी-सूर्य
13 हस्त-चंद्रमा
14 चित्रा-मंगल
15 स्वाति-राहू
16 विशाखा-गुरू
17 अनुराधा-शनि
18 ज्येष्ठा-बुध
19 मूल-केतु
20 पूर्वाषाढ़ा-शुक्र
21 उत्तराषाढ़ा-सूर्य
22 श्रवण-चंद्रमा
23 धनिष्ठा-मंगल
24 शतभिषा-राहू
25 पूर्वा भाद्रपद-गुरू
26 उत्तरा भाद्रपद –शनि
27 रेवती-बुध
14 सबसे शुभ नक्षत्र
ज्योतिष शास्त्र और वेदों उपनिषदों सनातन संस्कृति धर्म के अधिकतर विद्वानों के अनुसार 27 नक्षत्र में सबसे ज्यादा अधिक और शुभ पुष्य नक्षत्र को माना गया है। इस नक्षत्र योग में किया गया कार्य शीघ्र पूर्ण सफल होता है।
15 सबसे खराब नक्षत्र कौन सा होता है।
ज्योतिष शास्त्र और वेदों उपनिषदों सनातन संस्कृति धर्म के अधिकतर विद्वानों के अनुसार 27 नक्षत्र में सबसे ज्यादा अधिक अशुभ और बुरे नक्षत्र आश्लेषा, मघा, कृतिका और भरणी नक्षत्र को सबसे खराब बुरा नक्षत्र माना जाता है। इन नक्षत्रों में कोई शुभ कृत नहीं करने चाहिएं
16 सबसे शक्तिशाली नक्षत्र कौन सा होता है।
ज्योतिष शास्त्र और वेदों उपनिषदों सनातन संस्कृति धर्म के अधिकतर विद्वानों के अनुसार 27 नक्षत्र में सबसे ज्यादा अधिक शक्तिशाली घनिष्ठा नक्षत्र के बिच के दो चरणों में पैदा हुआ व्यक्ति गा, गू, नाम से पहचाना जाता है। मंगल इस नक्षत्र का स्वामीपति है, साथ हीं राशि स्वामीपति शनि ग्रह है। मंगल का नक्षत्र होने के नाते इस प्रकार के व्यक्ति ऊर्जायुक्त, तेजवान, पराक्रम सै भरपूर, कठिन परिश्रम से जीवन में ऊंचाई पाने वाला श्रेष्ठ व्यक्ति होता है।
17 ज्योतिष में नक्षत्र की वर्गीकरण श्रेणी कौनसी है।
नक्षत्र सूचि का वर्गी-करण
नक्षत्र सूचि वर्गी-करण : मनुष्य स्वभाव के आधार पर –
संज्ञा या स्वभाव के आधार पर नक्षत्र सूचि को क्रम अनुसार से वर्गीकृत किया जा सकता है!
- ध्रुव (अचल) नक्षत्र :- 4 रोहिणी, 12 उत्तरा-फाल्गुनी, 21 उत्तरा-षाढा, 26 उत्तरा-भाद्रपद ।
उपर दिए नक्षत्रों में अचल कृत करना चाहिए। अर्थ जातक को वो कार्य करना जिन मे स्थिरता की आवश्कता होती है।
जैसे- घर-प्रवेश, खेती शुरू करना, व्यवसाय आरंभ करना, नव-ग्रह को शांति पूजा आदि के कार्य, बाग़- बगीया निर्मत करवाना,
जनहित विश्रामालय बनाना, देव-मंदिर बनाना, गीत संगीत बजाना, नया वस्त्र डालना, प्रेम-अनुराग करना, नया आभूषण
डालना, नई पदोन्नति ज्वाइन करना आदि ।
विषेश– अगर कोई भी जातक अचल (स्थिर)नक्षत्रों के कृत चर नक्षत्र या किसी ओर नक्षत्र में करता है तो उस जातक को नुकसान ही होता है!
मिसाल के तौर पर जातक ने चर नक्षत्र में नए कपड़े ख़रीदे या अन्य कोई घर बनाया तो जातक को को और घर को परिवर्तन करना पड़ेगा।
अगर ऐसे नहीं है तो की घर दुबारा बनाना पड़ेगा, हाँ ऐसा भी हो जाता है की घर में ही परिवर्तन करते रहना पड़े ।
चुंकि घर का नेचर ही गतिमान हो गया।
इस प्रकार वह कृत जिसमे अपने मन को अचल (स्थिर) रखना हो उसी नक्षत्र में ही करने चाहिए ।
- चल (अस्थिर) नक्षत्र:- 7 पुनर्वसु, 15 स्वाति, 22 श्रवण, 23 धनिष्ठा, 24 शतभिषा।
इन नक्षत्रों में सवारी करना, दूरगामी यात्रा करना, तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना सिद्धि, खेत में कृषि यंत्र चलाना, साधनों को खरीद करना, इत्यादि शुभ है।
वह कृत जिसमे अपने मन को गतिमान रखना हो उन कार्यों को इन्ही नक्षत्र में करना चाहिए - उग्र (आक्रमक/क्रूर) नक्षत्र:-2 भरणी, 10 मघा, 11 पूर्वा फाल्गुनी, 20 पूर्वा षाढा, 25 पूर्वा भाद्रपद ।
इन नक्षत्रों में उग्र कार्य करना ही उत्तम होता है।
जैसे- तंत्र क्रिया करना, विष देना, समायोजित अग्नि लगा देना, अभियोजन/मुकद्दमा दर्ज करना, दुश्मन पर आक्रमण, दुश्मन से संधि कार्य, बुद्धमता/चतुरता से काम निष्पादित करना आदि !
4.समान्य (मिश्र) नक्षत्र :- 3 कृतिका, 16 विशाखा ।
इन नक्षत्र मे साधारण कृत, आग के कार्य व उग्र नक्षत्र के कृत भी कर सकते है ।
5.क्षिप्र (छोटे/लघु) नक्षत्र:- 1 अश्वनी, 8 पुष्य, 13 हस्त, 28 अभिजित ।
इन नक्षत्रों मे व्यवसाय आरंभ करना, महिला-पुरष से मित्रता, साँझा-कृत, ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति, खेलकूद, आयुर्वेद औषध तैयार करना,
चित्रकारीता, शिल्प-कारीगिरी,आदि कृत करना लाभ में होता है !
इनमें चर नक्षत्र के कृत भी कर सकते है।
6.मृदुल (मैत्र ) नक्षत्र :- 5 मृगशिरा , 14 चित्रा, 17 अनुराधा, 27 रेवती ।
इन नक्षत्रों में सभी मित्रतायुक्त और सुकोमल कृत करते रहने चाहिए ।
जिस प्रकार गीत-संगीत गाना, अभिनय नाटक करना, खेल-कूद, चित्रकरी आदि ।
- तीक्ष्ण/तेज (दारुण ) नक्षत्र :- 6 आदर, 9 आश्लेषा, 18 ज्येष्ठा, 19 मूल !
इन नक्षत्र मे उग्र आवेशित कृत, आपस में फूट, वार हमला करना, भूतप्रेत क्रिया दूर करना, जादू टोना क्रिया आदि
करना ठीक होता है !
🌿 जन्म के अनुसार विशेष प्रकार नक्षत्र योग 🌿
विष-कन्या योग :
कुछ नक्षत्र इस प्रकार के होते है जो खास तिथि व वार में आए तो उस समय पर जन्म लेने वाली कन्या विषकन्या कहलाती है !
A. रविवार और दूज आश्लेषा या शतभिषा ।
B. रविवार द्वादशी कृतिका, विशाखा या शतभिषा ।
C. मंगलवार सप्तमीआश्लेषा, विशाखा या शतभिषा ।
D. शनिवार दूज आश्लेषा ।
E. मंगलवार द्वादशी शतभिषा ।
F. शनि सातम या द्वादशी कृतिका ।
ऐसे योग में उत्पन्न हुई लड़की के परस्पर ग्रहों परिहार विष-कन्या योग होता है !
सर्पशीर्ष योग :
सूर्य व चन्द्र दो ग्रह एक साथ एक नक्षत्र में आ जाते है, तबि अनुराधा नक्षत्र भी हो, ऐसी परीस्थिति सिर्फ मार्गशीर्ष देसी माह में ही आ सकती है, तबी उसी अनुराधा नक्षत्र का 3 और 4 चरण सर्पशीर्ष योग बनता है । इस योग पैदा होने वाले के लिए अशुभ माना जाता है, उसी प्रकार से ही मुहूर्त-विज्ञान में किसी भी कृत के लिए भी अशुभ ही माना जाता है ।
दोषयुक्त अन्य भी जन्म नक्षत्र :
चित्रा के 1 और 2 चरण
18 खोई हुई वस्तु मिलेगी या नहीं मिलेगी ? उन नक्षत्रो को दी जाने वाली संज्ञा क्या है
जातक की जिस नक्षत्र मे वस्तु खोई है आने वाले नक्षत्र में जातक को अपनी खोई हुई वस्तु मिलेगी उसमे आने वाले नक्षत्र सूचि को अन्धाक्ष की संज्ञा दी जाती है।
जातक की जिस नक्षत्र मे वस्तु खोई है आने वाले नक्षत्र में जातक को अपनी खोई हुई वस्तु नही मिलेगी उसमे आने वाले नक्षत्र सूचि को सुलोचन की संज्ञा दी जाती है।
19 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तुजातक की जिस नक्षत्र मे वस्तु खोई है आने वाले नक्षत्र में जातक को अपनी खोई हुई वस्तु नही मिलेगी उसमे आने वाले नक्षत्र सूचि को सुलोचन की संज्ञा दी जाती है। शीघ्र मिलेगी
जातक की जिस नक्षत्र मे वस्तु खोई है आने वाले नक्षत्र में जातक को अपनी खोई हुई वस्तु शीघ्र मिलेगी उसमे आने वाले नक्षत्र सूचि को अंधाक्ष की संज्ञा दी जाती है। जिसमें आने वाले नक्षत्र रोहिणी, पुष्य, उo फाo, विशाखा, पूर्वाषाढ़, घनिष्ठा , रेवती हैं।
20 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तु नहीं मिलेगी।
जातक की जिस नक्षत्र मे वस्तु खोई है आने वाले नक्षत्र में जातक को अपनी खोई हुई वस्तु नहीं मिलेगी उसमे आने वाले नक्षत्र सूचि को सुलोचन की संज्ञा दी जाती है।जिसमें आने वाले नक्षत्र कृतिका, पुनर्वसु, पूo फाo, स्वाति, मूल, श्रवन , उतरा भाद्रपाद हैं।
21 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तु पता लगाने पर भी नही मिलेगी।
जातक की जिस नक्षत्र मे वस्तु खोई है आने वाले नक्षत्र में जातक को अपनी खोई हुई वस्तु बहुत पता लगाने पर भी नहीं मिलेगी उसमे आने वाले नक्षत्र सूचि को मध्याक्ष की संज्ञा दी जाती है।जिसमें आने वाले नक्षत्र भरणी , आद्रा, मघा, चित्रा, जेयष्ठा , अभि. , पूर्वा भाद्रपद है।
22 कौनसे नक्षत्र में खोई हुई वस्तु बहुत संघर्ष पता करने पर मिलेगी।
जातक की जिस नक्षत्र मे वस्तु खोई है , जातक के संघर्ष कर पता करने पर मिलेगी।उसमे आने वाले नक्षत्र सूचि को मन्दाक्ष कहते है।जिसमें आने वाले नक्षत्र अश्वानी, मृगशिरा, अश्वलेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़, शत्तभिषा आते हैं।
23 ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र में किसी भी नक्षत्र का दोष युक्त होने पर जातक नक्षत्र का उपाय कर जीवन को धनवान खुशहाल आनन्दमय शांतिमय बनाएं।
1 अश्विनी
अश्वनी नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर छोटे कुत्तों की सामर्थ्य अनुसार सेवा करे। नीम का पेड़ अवश्य लगाए। रेवड़ियां या तिल से बना व्यंजन जितना हो सके बांटे, या चींटियों को डाले।
2 भरणी
भरणी नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर गाय की सामर्थ्य अनुसार सेवा करे। गाय को मीठा खिलाए। गाय की पूंछ को सपर्श करे परिक्रमा करे। पूर्णमासी को खीर का परसाद भगवान को भोग लगाकर बांटे।
3 कृत्तिका
कृतिका नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर तांबे के बर्तन में लाल चंदन डाल कर सूर्य नमस्कार जल अर्पित करें। सूर्य आदित्यह्रदय स्रोत का पाठ प्रतिदिन करे।
4 रोहिणी
रोहणी नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर भगवान शिव के मन्दिर में शिवलिंग पर दूध जल बेलपत्र अर्पित करें। शिवलिंग का चरना-अमृत जरूर ग्रहण करे।
5 मृगशिरा
मृगशिरा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर हनुमान चालीसा पाठ प्रतिदिन करे। मंगलवार को हनुमान जी को चने के आटे (बेसन) की प्रसाद बांटे।
6 आर्द्रा
आद्रा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर सरस्वती अष्टोत्तर नाम माला का 5 बार पाठ प्रतिदिन करे। नीले फूल भगवान शिव के चरणो में चढ़ाएं। हवन सामग्री यज्ञ में दान देवे।
7 पुनर्वसु
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर अपने घर में अपने से बड़ों का कभी अनादर नही करे। अपने से बड़ों गुरुजनों का मान सम्मान का विशेष ध्यान रखें। भुन्ने हुवे चने गुड़ का दान करें।
8 पुष्य
पुष्य नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर शिव तांडव स्तोत्र पाठ प्रतिदिन करे। “श्रीं शिवाय नमस्तुभ्यम” मंत्र जप करें।
9 अश्लेषा
अश्वलेषा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर दुर्गा चालीसा पूजा अर्चना प्रतिदिन करे। कुल देवी की पूजा अर्चना करते रहना चाहिए। छोटे बच्चे बच्चियों को सताना नही चाहिए। नवरात्रि पूजन अवश्य करे।
10 मघा
मघा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर कुत्तों को मीठा नमकीन बदल कर प्रतिदिन कोई भी व्यंजन की सेवा करते रहना चाहिए। गणेश जी द्वादश नाममाला का जाप हमेशा करते रहना चाहिए।
11 पूर्वा फाल्गुनी
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर वेभव महालक्ष्मी व्रत पूजन विधि पूर्वक किया जाय तो जीवन आनन्दमय हो जाएगा। शुक्रवार को सफेद गाय को चावलो से बना हुआ व्यंजन खिलाए।
12 उत्तरा फाल्गुनी
उतरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर लक्ष्मी नारायण की पूजा पूर्णिमा को व्रत दान करें।”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र जप करें।
13 हस्त
हस्त नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर महादेव शिव की आराधना करनी चाहिए। शिव को सफेद वस्तुओ को शिव लिंग पर अर्पण करें।
14 चित्रा
चित्रा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर पंचमुखी हनुमान जी की पूजा अर्चना प्रतिदिन करे। मीठे रोट या प्रसाद को का मंगल को रोजाना हनुमानजी को अर्पित करें
15 स्वाति
स्वाति नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर सरस्वती अष्टोत्तर नाम माला का प्रतिदिन जप करें। नशा मुक्ति केन्द्र में जरूरतमंद मरीजों की मदद करे।
16 विशाखा
विशाखा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर छोटे बच्चे बच्चियों को शिक्षा स्कूल में गुरूवार को यथोचित मदद करे। प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा सामग्री से सम्बन्धित गुरूवार को यथोचित मदद करे।
17 अनुराधा
अनुराधा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर बगुलामुखी देवी मंत्र का जाप करें। काले तिल और गुड़ का शनिवार को दान करें।
18 ज्येष्ठा
ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर अपनी कूल देवी पूजा तीर्थ स्थल पर जा कर पूजा अर्चना वर्ष में एक बार अवश्य करे। विधवा बीमार बुजर्ग अपाहिज महिला का सम्मान मदद करे। इनका कभी अनादर नही करे।
19 मूल
मूल नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर नींबू पेड़ की जड़ अपने पास रखे। आवारा कुत्तों को रोटी मीठा नमकीन बदल कर खिलाए। गणेश जी द्वादश नाम माला जप करें।
20 पूर्वाषाढ़ा
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर अष्टमहालक्ष्मी और वैभव लक्ष्मी की साधना पूजा अर्चना से लाभ होगा। सफेद रंग गाय के दूध से बनने वाली मिष्ठान का भोग लगाएं बांटे।
21 उत्तराषाढ़ा
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर भगवान लक्ष्मी नारायण की पुर्णिमा कथा खीर प्रसाद बांटे। भगवान विष्णु के सहस्त्र नाम का पाठ करें।
22 श्रवण
श्रवण नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर कुंधकेश्वर महादेव शिव लिंग की पूजा अर्चना साधना प्रतिदिन करे।
23 धनिष्ठा
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर पंच मुखी हनुमान जी पूजा अर्चना साधना प्रतिदिन करे।
24 शतभिषा
शतभिषा नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर बीमार व्यक्तियों की किसी भी प्रकार की सहायता करे। जैसे ही 100 जन तक सहायता मिलते ही आकस्मिक लाभ मिलना शुरू हो जाता है।
25 पूर्वा भाद्रपद
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर धार्मिक आध्यात्मिक कार्यों में रूचि उनकी सहायता कराने पर अत्यधिक लाभ होता हैं।
26 उत्तरा भाद्रपद
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने पर बुजर्गो बीमार असहाय की सहायता कराने से लाभ होता हैं।
27 रेवती
रेवती नक्षत्र में जन्मां जातक को जीवन में समस्या आने से पहले ही उपाय शुरू कर ले तो समस्या नहीं आती है। समय सामर्थ्य अनुसार चींटियों पक्षियों गाय की सेवा करने पर अत्यधिक लाभ होता हैं।